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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
९. एक भव्य तीर्थंकर प्रतिमा । पद्मासन मुद्रामें अवगाहना साढ़े चार फुट । छत्र और भामण्डल कलापूर्ण है । दोनों ओर दो खड्गासन मूर्तियां हैं, किन्तु खण्डित हैं ।
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१०. सात फुट उन्नत, पद्मासन मुद्रामें तीर्थंकर मूर्ति छत्रत्रयी है । ऊपर दोनों कोनोंपर माला लिये हुए देव देवियाँ बनी हुई हैं। दो खड्गासन तथा दोनों ओर दो-दो मुगल मूर्तियाँ पद्मासन मुद्रा में । नृत्य-मुद्रामें चमरेन्द्र खड़े हैं। दोनों कोनोंपर यक्ष और यक्षी हैं। दो सिंह बने हुए हैं। शेष भाग खण्डित है ।
११. भगवान् पार्श्वनाथकी ५ फुट ऊँची पद्मासन प्रतिमा । सिरपर फणावली, उसके ऊपर छत्र और भामण्डल सुशोभित हैं। ऊपर पावों में दोनों ओर गज बने हुए हैं । नीचे दोनों ओर दो-दो खड्गासन मूर्तियाँ हैं । अलंकरणमें हिरण और देवियाँ उत्कीर्ण हैं ।
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१२. पाँच फुटकी खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमा । उसके सिरके ऊपर छत्रत्रयी और पीछे भामण्डल सुशोभित हैं। ऊपर दोनों सिरोंपर नभचारी गन्धवं हैं। उनके नीचे दोनों ओर एक खड्गासन और एक पद्मासन मूर्तियाँ विराजमान हैं। मूर्तिके दोनों किनारोंपर अलंकरण हैं । १३. सवा दो फुट ऊँची पद्मासन प्रतिमा है । सिरके पीछे भामण्डल सुशोभित है । १४. सात फुटके एक शिलाफलकपर भगवान् ऋषभदेवकी खड्गासन मूर्ति है । उसके दोनों ओर चार खड्गासन मूर्तियाँ हैं। उनसे नीचे चमरवाहक चमर लिये हुए भगवान्की सेवामें खड़े हैं। पादपीठपर वृषभलांछन अंकित है ।
१५. पाँच फुटके शिलाफलकपर पद्मासन प्रतिमा उत्कीर्ण है । बायीं ओर ९ लघु पद्मासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं, दायीं ओरका भाग खण्डित है । शिलाफलक भी टूटा हुआ है । १६. भगवान् अजितनाथकी खड्गासन प्रतिमा । बायीं ओर तीन लघु खड्गासन मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । दूसरी ओरका भाग खण्डित है । पादपीठपर गजका लांछन अंकित है । १७. पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमाके ऊपर छत्र हैं। छत्रके ऊपर ३ पद्मासन प्रतिमाएँ हैं । दायीं और बायीं ओर २-२ पद्मासन और १-१ खड्गासन प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं।
१८. सर्वतोभद्रका प्रतिमा । एक स्तम्भमें चारों दिशाओंमें चार पद्मासन प्रतिमाएँ विराजमान हैं ।
१९. किसी मूर्तिका ऊपरका भाग, जिसमें केवल छत्र मध्यमें और दो हाथी दोनों सिरों पर बने हुए हैं।
२०. एक पद्मासन प्रतिमा । सिर कटा हुआ है ।
२१. कक्ष नं. २० के सामने मैदानमें एक पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति रखी हुई है । उसके सिरके पीछे भामण्डल और सिरके ऊपर छत्रत्रयी है। दोनों पार्श्वोमें दो पद्मासन प्रतिमाएँ बनी हुई हैं। उनसे नीचे चमरेन्द्र चमर लिये हुए खड़े हैं । मूर्ति पर भव्य अलंकरण किया हुआ है । कुछ मूर्तियाँ ऐसी हैं, जो अन्य कक्षोंमें रखी हुई हैं । वे विवादास्पद कही जा सकती हैं। उनमें से एक है वदोह (विदिशा जिला ) से प्राप्त तीर्थंकर माताकी मूर्ति । माता पर्यंकपर लेटी हुई
। उनके बगल में सद्य:जात बाल तीर्थंकर लेटे हुए हैं। तीर्थंकर माताके सिरके पीछे भामण्डल है । उनके निकट इन्द्र द्वारा माताकी सेवाके लिए भेजी गयी चार देवियां खड़ी हैं। उनके हाथों में चामर आदि वस्तुएँ हैं। ये चार देवियाँ कोन थीं अथवा क्या कर रही थीं, इसका समाधान हमें 'हरिवंश पुराण' से इस भांति हो जाता है
सहैव रुवकप्रभारुचकया तदाद्याभया परा च रुचकोज्ज्वला सकलविद्युदग्रे सराः ।
दिशां च विजयादयो युवतयश्चतस्रो वरा जिनस्य विदधुः परं सविधिजातकर्मंश्रिताः || ३८ ३७