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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ २८. चन्द्रप्रभ मन्दिर-भगवान् चन्द्रप्रभकी इस मूर्तिकी अवगाहना सवा पांच फुटकी है। इसका वर्ण चितकबरा ( जिसमें हरे और पीले रंगकी बूंदें हैं ) है तथा यह कायोत्सर्गासनमें विराजमान है । प्रतिमाके सिरपर छत्रत्रय बने हुए हैं। सिरके दोनों ओर आकाशविहारी गन्धर्व पुष्पवर्षा कर रहे हैं। सौधर्म और ऐशान इन्द्र हाथोंमें चमर लिये हुए भक्तिमुद्रामें खड़े हुए हैं। मन्दिरमें गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ बने हुए हैं। गर्भगृह चार स्तम्भोंपर आधारित एवं मण्डपनुमा इसकी प्रतिष्ठा गोरमीकी जैन पंचायतने करायी थी।
२९. पाश्र्वनाथ मन्दिर-भगवान् पार्श्वनाथकी यह प्रतिमा चितकबरे पाषाणकी है। कायोत्सर्ग मुद्रामें स्थित है। इसका आकार छह फुट तीन इंच है। इसके सिरके दोनों ओर गजलक्ष्मी तथा पुष्पमाल लिये नभचारी गन्धर्व बने हुए हैं। मन्दिरमें अर्धमण्डप, गर्भगृह और आँगन हैं । इसके प्रतिष्ठाकारक हैं झिरिवाले श्री पातेराम पटवारी। इस मन्दिरके बगल में एक पक्का कुण्ड है, तथा एक चबूतरा बना हुआ है जो मुनियोके ध्यान, तपके लिए उपयोगमें आता था।
३०. चन्द्रप्रभ मन्दिर-कायोत्सर्गासन, वणं चितकबरा, अवगाहना ६ फुट । सिरपर छत्रत्रय । छत्रोंमें दोनों ओर आधारदण्ड लगा हआ है। सिरके ऊपर दोनों ओर गजलक्ष्मी उत्कीर्ण है। गजलक्ष्मीके निकट हाथ जोड़े हुए भक्त खड़े हैं । अधोभागमें दोनों ओर चमरवाहक खड़े हैं । इस मन्दिरमें गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ बने हुए हैं। इस मन्दिरके भी प्रतिष्ठाकारक झिरिवाले श्री पातेराम पटवारी हैं।
३१. नेमिनाथ मन्दिर-भगवान् नेमिनाथकी श्यामवर्ण, कायोत्सर्गासन तथा ४ फुट अवगाहनावाली प्रतिमा विराजमान है। सिरके ऊपर छत्रत्रयी सुशोभित है। उनके दोनों ओर गजलक्ष्मी है । मूर्तिके एक ओर कमलासीन चतुर्भुज यक्ष है तथा दूसरी ओर सिंहारूढ़ा यक्षी बनी हुई है। सम्भवतः ये गोमेद यक्ष और अम्बिका यक्षी हैं। देवीके नीचे एक वृक्ष दीख पड़ता है। सम्भवतः यह आम्रवृक्ष है जो देवीसे सम्बन्धित है। इसे बोधिवृक्ष मानना शायद संगते न होगा क्योंकि बोधिवृक्ष देवीके नीचे नहीं बनाया जाता, वह प्रायः चरण-चौकीपर अंकित किया जाता है । मन्दिरमें अधमण्डप और गर्भगृह हैं। इसकी प्रतिष्ठा झाँसीवाले श्री बुलाकीदासने करायी थी।
३२. अजितनाथ मन्दिर-सवा दो फुटके एक शिलाफलकपर भगवान् अजितनाथकी श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा बनी हुई है। सिरके ऊपर छत्रत्रयी है । उसके दोनों ओर अष्ट मंगलद्रव्य बने हैं। नीचे भगवान्के दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं। इसको प्रतिष्ठा श्री नानूराम कन्हैयालाल जयपुरवालोंने विक्रम संवत् १९९२ में करायी थी। मन्दिरमें अर्धमण्डप और गर्भगृह बने हुए हैं।
३३. सुमतिनाथ मन्दिर-यह मन्दिर नं.३२ के समान है। केवल तीर्थंकरका अन्तर है। शेष सब समान है।
इसके आगे ज्ञानगुदड़ी शिला है । उससे थोड़ा ऊपर चढ़कर एक छतरी बनी हुई है, जिसमें संवत् १९०२ के तीन चरण बने हुए हैं।
३४. आदिनाथ मन्दिर-भगवान् आदिनाथकी कृष्णवर्ण, खड्गासन, छह फुट अवगाहनावाली प्रतिमा विराजमान है। सिरके ऊपर छत्र हैं, बगलमें चमर लिये गन्धवं खड़े हैं। नीचे एक
१. इस क्षेत्रपर इस प्रकारके चितकबरे पाषाणकी प्रतिमाओंकी संख्या काफी है। सम्भवतः यह पाषाण इस
पर्वतपर उपलब्ध नहीं होता। ऐसा प्रतीत होता है कि इन मूर्तियोंका शिल्पी एक ही व्यक्ति था, जो मूर्तिनिर्माण-कलामें अकुशल था। इस पाषाणकी प्रायः सभी मूर्तियाँ बेडौल और विषमानुपातवाली हैं। आगे इस पाषाणका वर्ण चितकबरा ही लिखा जायेगा।