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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
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(आगरा ) की ओरसे हुई । बायीं ओरकी वेदीमें भगवान् अभिनन्दननाथकी खड्गासन श्वेतवर्णं २१ इंच अवगाहनावाली और वीर संवत् २४८५ में प्रतिष्ठित मूर्ति है। दायीं ओरकी वेदीपर पद्मासन बिस्कुटी वर्णकी २ फुट ऊँची प्रतिमा है, जो वीर संवत् २४९० में प्रतिष्ठित हुई । मन्दिर में अर्धमण्डप, आँगन और गर्भगृह हैं ।
११. ऋषभदेव मन्दिर - भगवान् ऋषभदेवकी खड्गासन कृष्णवर्णं साढ़े तीन फुट अवगाहना वाली मूर्ति है । प्रतिष्ठा संवत् १८२७ है । मन्दिर में अर्धमण्डप और गर्भगृह हैं । . प्रतिष्ठाकारक हैं अग्रवाल पंचान कोलारस ।
१२. नेमिनाथ मन्दिर - भगवान् नेमिनाथकी श्यामवर्णं, खड्गासन, पौने पाँच फुट अवगाहनावाली मूर्ति है । प्रतिष्ठा संवत् नहीं है । मन्दिरमें गर्भगृह है तथा उसके चारों ओर प्रदक्षिणापथ बना हुआ है । प्रतिष्ठा सुमावलीकी जैन पंचानने करायी ।
१३. आदिनाथ मन्दिर - भगवान् आदिनाथको दो पद्मासन श्वेतवर्णं मूर्तियां वेदीमें विराजमान हैं। दोनों ही एक-एक फुट ऊँची हैं । बायीं ओर की मूर्तिकी प्रतिष्ठा वीर संवत् २४७० ओकी मूर्ति की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १९९० में हुई थी । मन्दिर में गर्भगृह और
अर्धमण्डप हैं ।
१४. आदिनाथ मन्दिर - भगवान् आदिनाथकी कत्थई वर्णकी खड्गासन २१ इंच अवगाहनावाली प्रतिमा विराजमान है। वीर सं. २४६९ में प्रतिष्ठित है । मन्दिरमें अर्धमण्डप और गर्भगृह बने हुए हैं ।
१४ अ - आदिनाथ मन्दिर - मूर्ति के पीठासनपर ध्यानपूर्वक देखनेसे वृषभका लांछन दिखाई पड़ता है । कुछ लोग भ्रमवश उसे सिंह मानकर प्रतिमाको महावीरकी मानते हैं । यह पद्मासन श्वेतवर्ण २१ इंच ऊँची और वीर सं. २४९७ में प्रतिष्ठित हुई है । इस मन्दिरमें केवल
है।
इसके बगल में एक चबूतरेपर किन्हीं मुनिराजके चरण बने हुए हैं ।
१५. मुनिसुव्रतनाथ मन्दिर - भगवान् मुनिसुव्रतनाथकी श्यामवर्ण, खड्गासन, साढ़े तीन फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान है । प्रतिष्ठा वि. सं. १५४४ में हुई है । इस मन्दिरमें अर्धमण्डप और गर्भगृह बने हुए हैं ।
१६. महावीर मन्दिर - भगवान् महावीरकी बिस्कुटी वर्णकी पद्मासन प्रतिमा २७ इंच अवगाहना वाली विराजमान है । ऊपर देवियां पुष्पमाल लिये हुए उड़ती हुई दीख पड़ती हैं । उनसे नीचे दोनों ओर दो-दो पद्मासन तीर्थंकर - मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इनमें एक प्रतिमा नहीं रही । सम्भवतः यह शिलाफलक पंचबालयतियोंका है । यद्यपि लांछन बड़ा अस्पष्ट है, पर उसका आकार शूकर- जैसा लगता है। लेकिन ध्यानसे देखनेपर यह आकार शूकर अथवा वृषभकी अपेक्षा सिंहसे अधिक मिलता-जुलता है। अतः इस मूर्तिको महावीरकी मूर्ति मानना अधिक तर्कसंगत लगा । पंचबालयतिको दृष्टिसे भी इसे महावीरकी मूर्ति मानना ही उचित लगता है । मूर्तिके अधोभागमें चमरेन्द्र चमर लिये हुए भगवान् की सेवा करते दीख पड़ते हैं ।
मन्दिर केवल अर्धमण्डप और गर्भगृह हैं ।
१७. पार्श्वनाथ मन्दिर - भगवान् पार्श्वनाथको पद्मासन श्वेतवर्ण १५ इंच ऊँची और संवत् १७४५ में प्रतिष्ठित मूर्ति विराजमान है । मन्दिरमें अर्धमण्डप और गर्भगृह बने हुए हैं।
१८. आदिनाथ मन्दिर - भगवान् आदिनाथकी यह मूर्ति पद्मासन श्वेतवर्ण १५ इंच ऊँची और संवत् १९२३ की प्रतिष्ठित है । मन्दिरमें अर्धमण्डप और गर्भगृह बने हुए हैं ।