________________
" भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ सम्बन्धमें प्रचलित हैं-जैसे मढ़िया ( जबलपुर ) का जैन मन्दिर, उदयपुर ( बीना और विदिशाके बीच वारेथ स्टेशनसे छह कि. मी. दूर ) का हिन्दू मन्दिर। ये दोनों ही मन्दिर पिसनहारीके मन्दिर कहलाते हैं। कहते हैं, मढ़ियाका जैन मन्दिर आटा पीसनेवाली एक स्त्रीने बनवाया था और उदयपुरका हिन्दू मन्दिर वहाँके उदयेश्वर मन्दिरके निर्माण कार्यमें मजदूरी करनेवाली एक स्त्रीने पत्थर पीसनेकी कमाईसे बनवाया। इसी प्रकारकी किंवदन्ती सोनागिरके प्रस्तुत मन्दिरके सम्बन्धमें प्रचलित है। यहाँके मन्दिरके सम्बन्धमें इस प्रकारको किंवदन्ती प्रचलित होनेका कारण इस मन्दिरका आकार चक्की-जैसा होना बताया जाता है। किन्तु इस आकारके मन्दिर अयोध्या आदि कई स्थानोंपर पाये जाते हैं। हमें लगता है, वह मन्दिर मूलतः पाण्डुक शिला थी जो बादमें मन्दिरके रूपमें परिवर्तित कर दी गयी। . ... ६१. नेमिनाथ मन्दिर-यह प्रतिमा कृष्णवर्ण, खड्गासन, ३ फुट अवगाहनावाली है। इस . मन्दिरमें केवल गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ हैं। इसको प्रतिष्ठा जैन पंचान, मऊरानीपुरने करायी।
६२. महावीर मन्दिर-यह प्रतिमा मूगिया वणं, खगासन और ६ फुट आकारवाली है। मन्दिर में गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ बने हुए हैं। प्रतिष्ठाकारक मऊरानीपुरकी जैन पंचायत है।
६३. पार्श्वनाथ मन्दिर-पार्श्वनाथकी मूर्ति खड्गासन, मूंगिया वर्ण और ६ फुट अवगाहनावाली है । मन्दिरमें गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ हैं। इसकी प्रतिष्ठा श्री बरया ललितपुरने करायी थी।
६४. पार्श्वनाथ मन्दिर-यह मूर्ति पद्मासन, कृष्णवर्ण और १८ इंच ऊँची है। श्री पंछीलाल मैनपुरीवालोंने संवत् १९३० में इसकी प्रतिष्ठा करायो।
. . ६५. चन्द्रप्रभ मन्दिर-यह मूर्ति पद्मासन, श्वेतवर्ण और एक फुट ऊंची है। इसकी प्रतिष्ठा श्री देवाबाई, खुरजाने संवत् १९८० में करायो । मन्दिरमें गर्भगृह और उसके चारों ओर प्रदक्षिणापथ बने हैं। . इस मन्दिरसे आगे एक छतरीमें किन्हीं मुनिराजके दो चरण-चिह्न बने हुए हैं।
६६. सम्भवनाथ मन्दिर-यह मूर्ति पद्मासन, श्वेतवर्ण और १० इंच ऊंची है। इसकी प्रतिष्ठा श्री अशरफीबाई, अलीगढ़ने संवत् १८८५ में करायी। इस मन्दिरमें लघु गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ हैं।
। ६७. महावीर मन्दिर-यह मूर्ति खड्गासन, मूंगिया वर्ण, ३ फुट ९ इंच अवगाहनावाली है। इस मन्दिरमें गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ बने हुए हैं।
इस मन्दिरसे आगे एक गुफामें एक देवीको मूर्ति है, उसकी गोदमें सात बच्चे हैं। इसके आगे दो छत्रियाँ बनी हुई हैं जिनमें दो चरण-चिह्न विराजमान हैं। .. ..६८. महावीर मन्दिर-यह मूर्ति पद्मासन, कत्थई वर्ण और २१ इंच ऊँची है। इस मन्दिरमें - गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ बने हुए हैं। प्रदक्षिणा-पथमें भगवान् चन्द्रप्रभकी मूर्ति विराजमान है। यह पद्मासन, कत्थई वर्ण और २ फुट अवगाहनावाली है। संवत् १८५१ में इसकी प्रतिष्ठा हुई। इससे आगे बढ़कर एक कोने में एक ओर वेदी बनी हई है, जिसमें एक शिलाफलकमें पद्मासन महावीर स्वामीकी प्रतिमा विराजमान है । सिरके ऊपर छत्रत्रयी बनी हुई है । शीर्षपर दोनों ओर गजलक्ष्मी और सर्प लिये हुए गन्धर्व दीख पड़ते हैं। मूर्तिके सिरके दोनों ओर खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियां बनी हुई हैं। चरणोंके दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं । अधोभागमें दो सिंह बने हुए हैं।
.६९. आदिनाथ मन्दिर-यह मूर्ति खड्गासन, मुंगिया वर्णकी और ३ फुट ऊँची है। श्री दयाराम, लश्करने इसकी प्रतिष्ठा करायी। मन्दिरमें गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ बने हैं। यहाँसे