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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ तो लगेगा कि मूर्तिकी आंखोंमें तेज प्रस्फुटित हो रहा है, इसका रहस्यमय मौन दिव्य सन्देश विकीर्ण कर रहा है। ऐसा सन्देश, जो हृदयको छूता चला जा रहा है। यहाँके स्निग्ध वातावरणमें अलोकिक शान्ति, विराग और भक्तिका सौरभ घुला हआ है।
इससे आगे बढ़नेपर गर्भगृहमें पार्श्वनाथकी खड्गासन, साढ़े छह फुट अवगाहनावाली प्रतिमा विराजमान है। सिरपर छत्रत्रय है। छत्रके दोनों ओर एक-एक अर्हन्त प्रतिमा बनी हुई है। नीचे गजारूढ़ चमरेन्द्र हैं । मूर्तिके अधोभागमें दो भक्त हाथ जोड़े हुए खड़े हैं।
इससे आगेको वेदीमें मूलनायक नेमिनाथके अतिरिक्त पाश्र्वनाथ, चन्द्रप्रभ और शान्तिनाथकी श्वेतवर्ण, पद्मासन प्रतिमाएं विराजमान हैं।
अगली वेदीपर कृष्णवर्ण पार्श्वनाथ और श्वेतवर्ण चन्द्रप्रभ विराजमान हैं।
अन्तिम छोरपर बनी हुई वेदीमें भगवान् सुपार्श्वनाथकी पद्मासन श्वेतवर्ण भव्य प्रतिमा विराजमान है। इसके सिरपर नौ फणावली सुशोभित है। नीचे स्वस्तिक चिह्न होनेके कारण इसे सुपार्श्वनाथकी प्रतिमा कहा जाता है। मूर्ति-लेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा भट्टारक धर्मचन्द्रजीने संवत् १२७२ में करायी थी। इससे आगे श्रेयान्सनाथ, विमलनाथ और कुन्थुनाथ विराजमान हैं। ये तीनों मूर्तियां श्वेतवर्ण और पद्मासन हैं।
__ यह मन्दिर बहुत विशाल है। इस सम्पूर्ण मन्दिरके अन्दर और बाहर चौकमें संगमरमरका फर्श बना हुआ है।
मन्दिरके बाहर एक छतरीमें बाहुबली स्वामीकी खड्गासन श्वेत, संगमरमरकी साढ़े सात फुट ऊँची वीर संवत् २४७७ में प्रतिष्ठित प्रतिमा विराजमान है।
मन्दिरके सामने संगमरमरका बना हुआ एक समुन्नत मानस्तम्भ है। उसकी शीर्ष वेदिकामें पद्मासन चन्द्रप्रभ भगवान्की चारों दिशाओंमें चार प्रतिमाएँ विराजमान हैं। इसकी प्रतिष्ठा वीर संवत् २४६८ में हुई थी।
___मानस्तम्भसे कुछ आगे चलकर समवसरण मन्दिर बना हुआ है । समवसरणको गन्धकुटीमें चतुर्मुखी श्वेत पाषाणको प्रतिमा विराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा श्री मुखीमल जैन, आगराने वीर संवत् २४९३ में करायी।
चन्द्रप्रभ मन्दिरके अधोभागमें संग्रहालय बनानेकी योजना है।
५८. पाश्र्वनाथ मन्दिर-भगवान् पाश्वनाथकी प्रतिमा खड्गासन, मुंगिया वणं, ६ फुट अवगाहनावाली है। इस मन्दिरमें दो कक्षों में दो प्रतिमाएं और विराजमान हैं-भगवान् आदिनाथ और भगवान् महावीर। इनकी भी अवगाहना ६ फुट है। सि. देवकीनन्दन, झांसीने इसकी प्रतिष्ठा करायी।
५९. आदिनाथ मन्दिर-भगवान् आदिनाथको खड्गासन, मुंगिया वर्ण, ६ फुट अवगाहनावाली मूर्ति है । इस मन्दिरमें गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ बने हैं। प्रतिष्ठा जैन पंचान, छतरपुरने करायी।
६०. पिसनहारीका मन्दिर-यह मन्दिर चक्कीनुमा अथवा तीन कटनीवाली पाण्डुक शिला-जैसी आकृतिका बना हुआ है। इसमें भगवान् सुपार्श्वनाथकी प्रतिमा पद्मासन, हलका पीला वर्ण, २ फुट अवगाहनावाली विराजमान है । इसकी प्रतिष्ठा संवत् १५४९ में हुई थी।
इस मन्दिरके निर्माणके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती प्रचलित है कि यह मन्दिर एक निर्धन पिसनहारी महिलाने अपनी मजदूरीमें-से पैसे जोड़कर बनवाया था। कहते हैं, इसी कारण इस मन्दिरका आकार चक्कीके पाटों-जैसा बनाया गया। इस प्रकारको किंवदन्तियाँ कई स्थानोंके