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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं
दिखाई दिया जो उन्हें स्वप्नमें दीखा था। उन्होंने उस टीलेकी खुदाई की तो उन्हें मूर्तिका सिर दीख पड़ा। यह समाचार आसपासके गाँवोंमें भी पहुँचा । वहाँसे अनेक बन्धु आ जुटे । सावधानी के साथ खुदाई की गयी तो एक अत्यन्त भव्य और विशाल प्रतिमा भूगर्भसे प्रकट हुई। इसके साथ अन्य भी कई मूर्तियाँ निकलीं। वहाँ भक्तजनोंका मेला लग गया। वहाँ नित्यप्रति सैकड़ों व्यक्ति भगवान्के दर्शनोंके लिए आने लगे । अनेक व्यक्ति मनौतियाँ माननेके लिए आते और उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जातीं। इस प्रकारकी घटनाएं अनुश्रुतियाँ बनकर चारों ओर फैलने लगीं, जिससे इस स्थानकी प्रसिद्धि अतिशय क्षेत्रके रूपमें होने लगी ।
ब्रह्मचारी गुमानीलालजी मन्दिरके निर्माणके लिए चिन्तित थे । मूर्तियाँ खुले मैदानमें रखी हुई थीं। एक रात्रिको उन्हें स्वप्त दिखाई दिया । स्वप्नमें एक व्यक्ति उनसे कह रहा था - "तुम चिन्ता मत करो। तुम्हारा मनोरथ सफल होगा। मन्दिर निर्माणके लिए तुम्हें पर्याप्त धन मिलेगा । इस भविष्यवाणीसे ब्रह्मचारीजी आश्वस्त हुए और उन्होंने दूसरे दिनसे ही विभिस स्थानोंपर जाकर धन-संग्रह करना प्रारम्भ कर दिया । अल्पकालमें ही मन्दिरका निर्माण हो गया। मूर्ति जहाँ प्रकट हुई थी, उसी स्थानपर विराजमान है । मन्दिर निर्माणके पश्चात् यहाँ और आसपास कुछ जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं ।
अतिशय
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शान्तिनाथ भगवान्की मूर्तिमें महान् अतिशय है, इस प्रकारकी मान्यता इधरके प्रदेशकी जैन और जेनेतर जनतामें बहुप्रचलित है। यहाँ अनेक चामत्कारिक घटनाएँ घटित भी हो चुकी हैं। कहते हैं, एक बार क्षेत्रका प्रथम मेका श्री मोतीराम कुंजलाल करारीवालोंने बड़ी धूमधामसे कराया। उन्होंने सभी समागत यात्रियोंको प्रीतिभोज भी दिया। मेलेमें लगभग २० हजार जनसमुदाय एकत्र हुआ था । किन्तु जलकी समस्या विकट थी । नदीसे गाड़ियोंमें टंकियां भरकर मँगानेकी व्यवस्था की गयी थी । किन्तु इतने व्यक्तियोंके भोजमें इतनी दूरसे जलकी व्यवस्था करनेसे जलकी सन्तोषजनक पूर्ति नहीं हो पा रहीं थी । स्थिति बड़ी असन्तोषजनक थी। यह देखकर चिन्तामग्न ब्रह्मचारीजी प्रभु शान्तिनाथके चरणोंमें जा लेटे और बड़े गद्गद कण्ठसे प्रार्थना करने लगे - 'प्रभो ! पानीका बड़ा संकट है। क्षेत्रकी लाज तेरे हाथ है ।'
इधर मन्दिरमें ब्रह्मचारीजी भक्तिभरी स्तुति कर रहे थे और दूसरी ओर मन्दिरके निकट एक कुएँ में स्वयमेव पानी आ गया और बढ़ता गया । जनताको किरमिचके पुरहों द्वारा जल खींचकर सन्तुष्ट किया गया । जनतामें शान्तिनाथ भगवान् के इस चमत्कारकी बड़ी चर्चा रही . और सबके हृदय इस चमत्कारके कारण भक्तिसे भर गये ।
इस प्रकारके चमत्कार यहाँ आये दिन होते रहते हैं। इस प्रदेशकी जैनेतर जनता भी भगवान् शान्तिनाथकी भक्त है । वह इसे चेतनाथ बाबाके नामसे मानती है । लगता है, 'चेतनाथ'
नाथका अपभ्रंश है। सम्भवत: प्राचीन कालमें यहाँ कोई मन्दिर था, उस मन्दिरको चैत्यालय कहा जाता था अथवा इस मन्दिरमें चैत्य रहा होगा । अतः यहाँके मूलनायक भगवान् शान्तिनाथको चैत्यनाथ कहा जाने लगा होगा । फिर चैत्यनाथसे बिगड़कर धीरे-धीरे चेतनाथ हो गया । अस्तु !
- इधर आसपास के ग्रामोंमें जब भी कोई मनुष्य अथवा पशु बीमार पड़ जाता है तो लोग बाबा चेतनाथकी बोलारी बोलते हैं । फलतः उसको तत्काल आराम हो जाता है ज