Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ ५९० (VII) बाल-तपस्वी वैश्यायन-पद ५५६ भगवान का आरोग्य-पद ५८० तिल के पौधे की निष्पत्ति : गोशाल का सर्वानुभूति का उपपात-पद ५८० अपक्रमण-पद ५५८ सुनक्षत्र का उपपात-पद ५८० गोशाल के तेजोलेश्या का उत्पत्ति-पद ५५९ गोशाल का भवभ्रमण-पद ५८१ गोशाल की पूर्व-कथा का उपसंहार-पद ५५९ सोलहवां शतक (पृ. ५९०-६१२) गोशाल का अमर्ष-पद ५५९ पहला उद्देशक ५९० गोशाल का स्थविर आनंद के समक्ष संग्रहणी गाथा आक्रोश का प्रदर्शन-पद ५६० वायुकाय-पद ५९० आनंद स्थविर का भगवान् से निवेदन-पद ५६३ अग्निकाय-पद ५९० आनन्द स्थविर द्वारा गौतम-आदि को क्रिया-पद ५९० अनुज्ञापन-पद ५६४ अधिकरणी-अधिकरण-पद ५९१ गोशाल का भगवान के प्रति आक्रोश दूसरा उद्देशक ५९३ पूर्वक स्वसिद्धान्त-निरूपण-पद ५६४ जीवों का जरा-शोक-पद ५९३ भगवान् द्वारा गोशालक के वचन का शक्र का अवग्रह-अनुज्ञापन-पद ५९३ प्रतिकार-पद ५६७ शक्र-सम्बन्धी व्याकरण-पद ५९४ गोशाल का पुनः आक्रोश-पद ५६७ चैतन्य-अचैतन्य-कृत-कर्म-पद ५९५ गोशाल द्वारा सर्वानुभूति का भस्म-राशि- तीसरा उद्देशक -करण-पद ५६८ कर्म-पद ५९५ गोशाल द्वारा सुनक्षत्र को परिताप-पद ५६८ अर्श-छेदन में वैद्य का क्रिया-पद ५९५ गोशाल का भगवान के वध के लिए चौथा उद्देशक ५९६ तेज-निसर्जन-पद ५६८ नैरयिक का निर्जरा-पद ५९६ श्रावस्ती में जन-प्रवाद-पद ५७० पांचवां उद्देशक ५९८ गोशाल से श्रमणों का प्रश्नव्याकरण-पद ५७० शक्र का उत्क्षिप्त प्रश्नव्याकरण-पद ५९८ गोशाल का संघभेद-पद ५७० गंगदत्त देव के संदर्भ में परिणममाणगोशाल का प्रतिक्रमण-पद -परिणत-पद ५९९ गोशाल के द्वारा नानासिद्धान्त-प्ररूपण-पद ५७१ गंगदत्त देव का आत्म-विषयक प्रश्न-पद ६०० अयम्पुल-आजीविकोपासक-पद ५७२ गंगदत्त देव द्वारा नाट्य-उपदर्शन-पद ६०० गोशाल द्वारा अपनी मरणोत्तर क्रिया का गंगदत्त देव का पूर्व-भव-पद ६०१ निर्देश-पद ५७४ छठा उद्देशक गोशाल का परिणाम-परिवर्तनपूर्वक स्वप्न-पद ६०३ कालधर्म-पद ५७५ भगवान् का महास्वप्न-दर्शन-पद ६०४ गोशाल का निर्हरण-पद ५७६ स्वप्न-फल-पद ६०६ भगवान् के रोग-आतंक-प्रादुर्भवन-पद ५७७ गंध-पुद्गल-पद ६०८ सिंह का मानसिक-दुःख-पद ५७७ सातवां उद्देशक ६०८ भगवान् द्वारा सिंह को आश्वासन-पद ५७७ आठवां उद्देशक ६०८ ५७१ ६०३ m

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