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Shri Mahavir Jain Arad
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अवरच
१.शतके उद्देशार | ॥४९१५
२. १ अथवा एकेन्द्रियोना देशो अने त्रीन्द्रियनो देश छ- इत्यादि पूर्व प्रमाणे अहिं त्रण विकल्पो जाणवा. ए प्रमाणे यावद् अनिद्रिय | ध्याख्या- |सुधी त्रण विकल्पो मांगा कहेवा. तेमा जे जीवना प्रदेशो छे. ते अवश्य एकेन्द्रियोना प्रदेशो छ, १ अथवा एकेन्द्रियोना प्रदेशो प्राति: 18 अने बेइन्द्रियना प्रदेशो छ, २ अथवा एकेन्द्रियोना प्रदेशो अने वेइन्द्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे सर्वत्र प्रथम भांगा सिराय के भांगा १८९१॥
जाणवा, ए प्रमाणे यावद् अनिद्रिय मुधी जाणवू. हवे जे अजीयो छे ते चे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-रूपिअजीव अने वीजा अरुपिअजीव, जे रूपिअजीवो के ते चार प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ स्कंधो, यावत् ४ परमाणुपुद्गलो. तथा जे अरूपिअजीवो छे ते सात प्रकारना कह्या छ, ते आ प्रमाणे-१ नोधर्मास्तिकायरूप धर्मास्तिकायनो देश, २ धर्मास्तिकायना प्रदेशो; ए प्रमाणे अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू; यावत् आकाशास्तिकायना मदेशो अने अद्धासमय. विदिशाओमां जीवो नथी, माटे सर्वत्र देशविषयक भांगो जाणवो. [म.] हे भगवन् ! याम्या (दक्षिण) दिशा शुजीवरूप छे-इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जेम ऐन्द्री दिशा संबन्धे का (सू. ६) तेम सर्व अहीं जाणवू. जेम आमेयी दिशा संवन्धे का (सू. ७) ते प्रमाणे नैऋती दिशा माटे जाणवू. जेम ऐन्द्री दिशा संबन्वे कहतेम वारुणी (पश्चिम) दिशा माटे जाणवू. वायव्यदिशाने आग्नेयीनी पेठे जाणवू. ऐन्द्रीनी पेठे सोम्या अने आनेयीनी पेठे ऐशानी दिशा जाणवी. तथा विमला-ऊर्ध्वदिशा-मां जेम आग्रेयीमा जीवो कह्या तेम जीवो अने ऐन्द्रीमा अजीवो कह्या तेम अजीवो जाणवा. ए प्रमाणे तमा-अधोदिशा-ने विषे पण जाणवू, परन्तु विशेष ए छे के, तमा दिशामा | अरूपिअजीबो छ प्रकारना छे, कारण के त्यां अद्धासमय (काल) नी. ॥ ३९४ ॥
कति णं भंते! सरीरा पन्नत्ता, गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तंजहा-ओरालिए जाव कम्मए । ओरालिय
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