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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥९५४॥
ASI-KA
बदेशा ॥९५४॥
सब्वं भाणियब्वं जाव तेण परं बोच्छिन्ना दीवा य समुदा य तपण मिच्छा, अहं पुण गोपमा एबमाइक्वामिजाव | परूवेमि-एवं खलुजंबुद्दीवादीया दीवालवणादीया समुद्दा संठाणओएगविहिविहाणा विधारओ अणेगविहिषिहा
णा एवं जहा जीवाभिगमेजाव सयंभूरमणपज्जवसाणा अस्सि तिरियलोए असंखेने दीवसमुद्दे पन्नतेसमणाउसो।। | ते काले-ते समये महावीरस्वामी समोसा, पर्षद् पण पाछी गई. ते काले-ते समये श्रमण भगवन् महावीरना मोटा शिष्य इंद्रभूति नामे अनगार वीजा शतकना निग्रन्थोद्देशकमां वर्णव्या प्रमाणे गवत् मिक्षाए जता घणा माणसोनो शन्द सांभळे ये-पहु माणसो परस्पर आ प्रमाणे कई २-यावत् प्ररूपे के 'हे देवानुप्रियो । शिव राजा एम कहे -पावत् एम प्ररूपे छे-हे देवानुप्रियो ! मने अति .यवाळु शान अने दर्शन उत्पम थयुं छे, अने यावत् सात द्वीप अने सात समुद्रो के, त्यार पछी द्वीपो अने समुद्रो नथी, तो ए प्रमाणे केम होय ! [H०] त्यार पछी भगवान् गौतमे घणा माणसो पासे आ पात सांभळी, अबधारी श्रद्धावाना थई | निग्रंथ उद्देशकमां कमा प्रमाणे यावत् श्रमण भगवंत महावीरने पूज्यू-हे भगवन् ! शिवराजर्षि कहे के के-'यावत् सात द्वीप अने सात समुद्र के, त्यार पछी काइ नथी' तोए प्रमाणे केम होइ के [उ०] 'हे गौतम' ! एम कही धमण भगवान महावीरे गौतमने आ प्रमाणे कयु- गौतम! घणा माणसोजे परस्पर ए प्रमाणे कहे छे, इत्यादि वधु कहे, यावद् ते शिवराजर्षि पोताना उपकरणो मूकं अने हस्तिनापुर नगरमा जब श्रृंगाटक, त्रिक अने बहु प्रकारना मागोमां आ प्रमाणे कहे थे, यावत् सात द्वीपो अने समझो छे त्यार पछी नथी, त्यारवाद ते शिवराजर्षिनी पासे आ बात सांभळी अर्थ अवधारी हस्तिनापुर नगरमा माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे के के-'यावद मात दीप अने समुद्रो छे, ते पछी, कांड नवी' इत्यादि, ते मिथ्या (असत्य) छे. हे गौतम ! हुंए प्रमाणे कहुं छु,
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