Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्याख्या
प्रज्ञातिः ॥१०२७॥
www.kobatirth.org
गरहह अवमन्नह, संखे णं समणोवासए पियधम्मे चैव दढम्मे चैव सुदक्खुजागरियं जागरिए (सू० ४२८) | [ बाद [ पूर्वे कला ] ते श्रमणोपासको आवती काले यावत् सूर्योदय समये स्नान करी, बलिकर्म करी यावत् शरीरने अलंकृत करी पोत पोताना घरथी नीकळी एक स्थळे मेगा थाय छे, एक स्थळे भेगा थइने - इत्यादि बधुं प्रथम निर्गमवत् जाणवु यावत् ( भगवंत महावीरनी पासे जइ ) तेमनी पर्युपासना करे छे. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा ते समाने धर्मकथा कही. यावत् 'ते आज्ञाना आराधक थाय छे' त्यां सुधी जाण ं त्यार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीरनी पाथी धर्मने सांभळी, अवधारी, हृष्ट अने तुष्ट थया, अने उभा यह श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी, ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां आव्या; आवीने शंख श्रमणोपासकने तेओए एम कछु के-'हे देवानुप्रिय ! तमे गइ काले अमने एम कधुं हतुं के, 'हे देवानुप्रियो ! तमे पुष्कळ अशनादि आहारने तैयार करावो, यावद्- आपणे विहरीशुं, त्यार बाद तमे पोपघशालामां यावद् विहर्या, तो हे देवानुप्रिय ! तमे अमारी ठीक हीलना (हांसी) करी.' पछी 'हे आर्यो!' एम कही श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे क- 'हे आर्यो " तमे शंख श्रमणोपासकनी हीलना, निंदा, खिंसना, गहां अने अवमानना न करो, कारण के ते शंख श्रमणोपासक धर्मने विषे प्रीतिवाको अने दृढतावालो ने, तथा तेणे [ प्रमाद अने निद्राना त्यागथी ] सुदृष्टि-ज्ञानीनुं जागरण करेल . ।। ४३८ ॥
भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भ० महा० वं न० २ एवं वयासी कह विहा णं भंते! जागरिया पण्णत्ता १, गोमा ! तिबिहा जागरिया पण्णत्ता, तंजहा - बुद्धजागरिया अबुद्धजागरिया सुदक्खुजागरिया, से केण० एवं वु० तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तंजहा - बुद्धजा० १ अयुद्धजा० २ सुदक्खु० ३१, गोयमा ! जे इमे अरिहंता
For Private And Personal
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
१२ शतके उद्देशः १ ॥१०२७॥

Page Navigation
1 ... 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235