Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या प्रजाप्ति ॥१०३६॥
|१२शतके उद्देशा
१०३
| धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरहत्तारो भवंति, एएसि णं जीवाणं जागरिपत्तं साहू, से तेणद्वेण जयंती! एवं वुच्चइ अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू ।।
०] हे भगवन् ! सुतेलापणु सारं के जागरितत्त्व-जागेलापणु सारूं ? [उ०] हे जयंती केटलाक जीवोनुं सूनेलापणु सारु, अने केटलाक जीवोर्नु जागेलाषणु सारं. [प्र०] हे भवगन् ! शा हेतुथी तमे एम कहो छो के 'केटलाक जीवोनु मूतेलापणु सारं अने केटलाक जीवोन जागेलापणु सावं! [उ.] हे जयंती ! जे आ जीवो अधार्मिक, अधर्मने अनुसरनारा जेने अधर्म प्रिय छ पवा, अधर्म कहेनारा, अधर्मने ज जोनारा, अधर्ममा आसक्त, अधर्माचरण करनारा अने अधर्मवीज आजीविकाने करता विहरे छे, ए जीबोर्नु सूतेलापणु सारं हे. जो ए जीवो सूतेला होय तो बहु प्राणोना, भूतोना, जीवोना तथा सञ्चोना दुःख माटे, शोक माटे, यावत्-परिताप माटे थता नथी, बळी जो ए जीवो मतेला होय तो पोताने, वीजाने के बनने घणी अधार्मिक संयोजना बडे जोडनारा होता नी, माटे ए जीवोनु मृतेलापणु सारुं छे. तथा हे जयंती! जे आ जीवो धार्मिक अने धर्मानुसारी छे, यावत्-धर्मवडे आजीविका करता विहरे छे, ए जीवोनुं जागेलापणु सारुं छे; जो ए जीवो जागता होय तो ते घणा प्राणीओना यावत्-सच्चो ना अदुःख ( सुख ) माटे यावत्-अपरिताप (शान्ति ) माटे बर्ते छ, वळी ते जीवो जागता होय तो पोताने, परने अने वनेने घणी धार्मिक संयोजना (क्रिया) साधे जोडनारा थाय के, तथा ए जीवो जागता होय तो धर्मजागरिकावडे पोताने जागृत राखे , माटे ए जीवोन जागेलापणु सारुं छे, ते हेतुथी हे जयंती! एम कहेवाय छे के, केटलाक जीवोन स्तेलापणु सारुं अने केटलाक जीवान जागेलापणु सारं छे'.
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