Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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*१२शतके
प्राप्ति १.६२॥
॥१.६२॥
Filएक तरफ एक असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ बे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना चार भाग करवामां आवे का तो एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे चतुष्कसंयोग, यावद्-संख्यातसंयोग
कहेवो. ए बधा संयोगो असंख्यातनी पेठे अनन्तने पण कहेवा; परन्तु एक 'अनन्त' शब्द अधिक कहेवो; याबद्-अथवा एक तरफ संख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संख्याता असंख्येयप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा संख्याता अनंतप्रदेशिक स्कन्धो होय . जो तेना असंख्याता विभाग करीए वो एक तरफ असंख्यात परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ असंख्यात द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्त प्रदेशिक स्कंध होय छे, यावद्-अथवा एक तरफ असंख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा एक तरफ असंख्याता असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा असंख्याता अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना अनन्त विभाग करवामां आवे तो अनन्त परमाणुपुद्गलो थाय छे. ॥ ४४५ ॥
एएमि पं भंते! परमाणुपोग्गलाणं साहणणाभेदाणुवाएणं अणताणता पोग्गलपरिया समणुगंतव्वा | भवंतीदि मक्खाया?, हंता गोयमा! एएसि णं परमाणुपोग्गलाण साहणणा जाब मक्खाया ।। कहविहे णं भंते! पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते, गोयमा! सत्तविहा पो परि० पण्णता, तंजहा-ओरालियपो. परि० वेउब्धियः तेयापो० कम्मापो० मणपो० परियट्टे वइपोग्गलपरियट्टे आणापाणुपोग्गलपरिअडे । नेरइयाण भंते! कतिविहे
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