Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रसि
॥१०३८॥
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'जाव विहति एएसि णं, जीवाणं अलसियत्त साहू, एए णं जीवा अंलसा समांणा नो बहूणं जंहा सुता तहां अलसा भाणियब्बा, जहा जागरा तहा दक्खा भाणियब्वा जावं संजोएत्तारो भवंति, एए णं जीवा दक्खा समाणा बहूहिं आयरिवेयावच्चेहिं जाव उवज्झाय- थेर० तबस्सि० गिलाणवेया० सेहवे० कुलवेया० गणवेया० संघवेयाव० साहम्मियवेयावश्चेहिं अंताणं संजोएत्तारो भवंति, एएसि णं जीवाणं दक्वत्तं साहू, से तेणद्वेणं तं चैव जांव साहू ॥ सोदियवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ ?, एवं जहा कोहबसट्टे तहेब जाव अणुपरियहः । एवं चक्खि दियव सहेवि, एवं जाव फासिंदियवसट्टे जाव अणुपरियगृह । तए णं सा जयंती समणोवोसिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अतियं एयमहं सोचा निसम्म हट्टतुट्ठा सेसं जहा देवाणंदाए तहेव पव्बया जाव सब्बदुक्खप्पहीणा । सेवं भंते!२ति ॥ (सू ४४३ ) ॥ १२-२ ॥
[प्र० ] हे भगवन् ! दक्षपणु-उद्यमीपणु सारुं के आलसुपणु सारुं १ [अ०] हे जयंती ! केटलाक जीवोनुं दक्षपणु सारं अने केटलाक जीवोनुं आलसुपणु सारुं [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो-इत्यादि तेज प्रमाणे कहेवु. [अ०] हे जयंती ! जे आजीवो अधार्मिंक (अधर्मानुसारी) यावद् विहरे छे, ए जीवोनुं आळसुपणु सारुं छे. ए जीवो जो आळसु होय तो घणा जीवोना दुःख माटे थता नथी - इत्यादि बधुं 'सूतेलानी पेठे कहेवु', तथा 'जागेला'नी पेठे दक्ष-उद्यमी जाणवा, यावत् - [ धार्मिक प्रवृत्तिओ साथै ] जोडनारा थाय छे. बळी ए जीवो दक्ष होय तो आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष (नव दीक्षित ) ' कुल, गण, संघ, अने साधर्मिकना घण्णा वैशवन्ध सेवा - साथै आत्माने जोडनारा थाय छे. तेथी ए जीवोनुं दक्षपणु सारुं छे. माटे हे जयंती !
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१२ शतके उद्देशः२ ॥१०३८||

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