Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्यानादब्बलियन
१२शतके उद्देशान १०३७॥
बलियत्तं भंते ! साहू दुयलियत्तं साह ?, जयंती! अत्यंगइपाणं जीवाणं बलियतं साहू अत्थेगइयाणं जीवाणं
दुब्बलियत्तं साहू, से केणट्टेणं भंते ! एवं युचड़ जाव साडू?, जयंती!जे इमे जीवा अहम्मिया जाव विहरति एएसि अप्रप्तिः | जीवाणं दुबलि यत्तं साहू, एए णं जीवा एवं जहा सुत्तस्स तहा दुबलियस्स वत्तव्वया भाणियब्वा, बलियस्स ॥९०३७ जहा जागरस्स तहा भाणियब्बं जाव संजोएत्तारो भवंति, एएसिणं जीवाणं बलियत्तं साहु, से तेणतुणं जयंती!
एवं बुच्चइ तं चेव जाव साहू ॥
[प्र.] हे भगवन् ! सबलपणु सारं के दुर्वलपणु सारं ? [उ०] हे जयंती ! केटलाक जीवोनु सबलपणु सारुं अने केटलाक 5 दाजीवोनु दुर्बलपणु सारूं. [प्र.] हे भगवन् ! तमे ए प्रमाणे शा हेतुधी कहो छो के, 'केटलाक जीवोनू सबलपणु सारुं अने केटलाक |
जीवोर्नु दुर्बलपणु सारं १ [उ०] हे जयंती ! जे आ जीवो अधार्मिक छे, अने यावत् अधर्मवडे आजीविका करता विहरे छे, ए
जीवोन दुर्बलपणु सारूं, जो ए जीवो दुबला होय तो कोइ जीवना दुःख माटे थता नथी-इत्यादि 'स्तेला'नी पेटे दुर्बलपणानी वक्तदव्यता कहेवी, अने 'जागता'नी पेठे सवलपणानी वक्तव्यता कडेवी; यावत्-धार्मिक क्रिया-संयोजनावडे जोडनारा थाय छ, माटे Pए जीवोनु बलवानपणु सारुं छे, ते हेतुथी हे जयंती ! एम कहेवाय छे के-इत्यादि केटलाक जीवोर्नु बलवानपणु अने केटलाक | 15जीवोर्नु दुर्बलपणु सारं छे.
दक्खत्तं भंते ! साहू आलसियत्तं साह, जयंती! अस्थगतियाणे जीवाणं दक्खत्तं साह अत्येगतियाणं जीवाणं आलसियत साह, सेकेणटेणं भंते ! एवं बुखद तं चेव जाव साहू, जयंती। जे इमे जीवा अहम्मिया
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