Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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Shri Mahavir Jain Aradha
Achary
Klasagarsur Gyamandr
पास्या
११०२९॥
किं बंधह किं पकरेति किं चिणाति किं उपचिणाति ?, संखा! कोहवसट्टे णं जीवे आउयवजाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधणवद्धाओ एवं जहा पढमसए असंवुडस्स अणगारस्म जाव अणुपरियड । माणवसद्दे णं भंते ।
का१२शतके जीवे एवं चेव, एवं मायावसहेवि, एवं लोभवसद्देवि जाव अणुपरियदृइ । तए णं ते समणोवासगा समणस्स भग
| उद्देशा
॥१०२९॥ वओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउब्विग्गा ममणं भगवं महावीरं वं. नम०२ जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवा०२ संख समणोवासगं वं० न०२त्ता एयमढे संमं विणएणं भुजो २ स्वाति तए णं ते समणोवासगा सेस जहा आलभियाण जाव पडिगया, भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदह नमंसह २ एवं वयासी-पभू णं भते! संखे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं सेस जहा इसि
भदपुत्तस्स जाव अंतं काहेति । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाब विहर: (सूत्रं ४४० ) ॥ १२-१॥ हा प्र०] त्यार बाद ते शंख श्रमणोपासके श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी आ प्रमाणे कधु-हे भगवन् ! 'क्रोधने वश होवाथी पीडित थरेलो जीव शुं बांधे, झुं करे, शेनो चय करे अने शेनो उपचय करे ? [उ.] हे शंख ! क्रोधने वश यवाथी पीडित ययेलो जीव आयुष सिवायनी सात कर्मप्रकृतिओ शिथिल बन्धनयी बांधेली होय तो कठिन बन्धनवाळी करे-इत्यादि सर्व प्रथम शतकमां कडेला संवररहित अनगारनी पेठे जाणवु, यावत् ते [ संवररहित साधु ] संसारमा भमे छे. [प्र०] हे भगवन् ! मानने वश थवाथी | पीडित थयेलोजीद बांधे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्वे कसा प्रमाणे जाणवू, अने एज प्रमाणे मायाने यश थवाथी पीडित थयेला अने लोभने वयवायी पीडित वयेला जीव संबन्धे पण जाणवु यावत् ते संसारमा भमे छे.त्यार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीर पासेथी ए|
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