Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या- प्रज्ञप्तिः ॥१००८
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| प्राप्त थइ मरण समये काल करी ऊर्ध्व लोकमां चंद्र अने सूर्यनी उपर बहु दूर अंबडनी पेठे यावत् ब्रह्मलोक कल्पमा देवपणे उत्पन्न थयो. त्यां केटलाक देवोनी स्थिति दस सागरोपमनी कहेली छे. तेमां महाबल देवनी पण दस सागरोपमनी स्थिति कहेली छे. हे ११शतके सुदर्शन ! तुं ते ब्रह्मलोक कल्पमा दस सागरोपम सुधी दिव्य अने भोग्य एवा भोगोने भोगवी ते देवलोकथी आयुषनो, भवनो उद्देश:११
8॥१००८॥ | अने स्थितिनो क्षय थया पछी तुरतज च्यवी अहींज वाणिज्यग्राम नामना नगरमां श्रेष्ठिना कुलमा पुत्रपणे उत्पन्न थयो छे. ॥४३१॥12
तए णं तुमे सुदंसणा! उम्मुकवालभावेण विनायपरिणयमेत्तणं जोवणगमणुप्पत्तण तहारूवाण थेराण अ. तियं केवलिपन्नत्ते धम्मे निसते, सेऽविध धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए तं सुटु ण तुमं सुदंसणा! इदाणिं पकरेसि । से तेणद्वेणं सुदंसणा! एवं बुचइ-अस्थि णं एतेसिं पलिओवमसागरोवमा खयेति वा अवचयेति बा, तए गं तस्स सुदंसणस्स सेहिस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयम सोचा निसम्म सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेण परिणामेण लेसाहिं विसुज्झमोणीहि तयावरणिज्वाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापोहमग्गणगवे. सणं करेमा/स्स सन्नीपुब्वे समुप्पन्ने एपमहूँ सम्म अभिसमेति,तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणेणं भगवया महा। वीरेणं संभारियपुब्वभवे दुगुणाणीयसड्ढासंवेगे आणंदसुपुतनयणे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आ०२ वं. नम २त्ता एवं बयासी-एवमेय भंते !जाव से जहेयं तुज्झे वदहत्तिकहु उत्तरपुरच्छिमं दिसीभार्ग अबक्कमह सेसं जहा उसमदत्तस्स जाव सब्वदुक्म्वप्पहीणे, नवरं चोद्दस पुत्वाइं अहिजइ बहुपडिपुन्नाई दुवालस वासाइं मामनपरियाग पाउणइ, सेसं तं चेव । सेवं भंते! सेवं भंते ॥ (सूत्र ४३२) । महन्बलो समत्तो।।११-११ ॥
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