Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 185
________________ Shri Mahave Jain Aradhana Kendra www.bath.org Acharya Sh Kalashsagarsur Gyanmandir ११शतके उद्देश१५ १०१८ [H०] हे भगवन् ! सौधर्मकल्पमा वर्णसहित अने वर्णरहित द्रव्यो के -दत्यादि पूर्ववत प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! हा, छे. ए व्याख्या-माप्रमाणे यावद् ईशान देवलोकमां पण जाणवू. ते प्रमाणे यावद् अच्युतमां, अवेयकविमानमा, अनुत्तरविमानमां अने ईपत्यागभारा प्राप्तिः पृथिवीमा (सिद्धशिलामां) पण वर्णसहित अने वर्णरहित द्रव्यो छे. त्यार बाद ते अत्यन्त मोटी परिषद् यावद् विसर्जित थई. पछी ॥१.१८॥ आलभिका नगरीमां शृंगाटक, त्रिक-विगेरे मार्गोमां घणा माणसोने एम कई के इत्यादि शिव राबर्षिनी पेठे कहेवु, यावत् ते सर्व दुःखथी रहित थया. परन्तु विशेष ए के, त्रिदंड, कुंडिका यावद् गेरुथी रंगेला बनने पहेरी विभंगज्ञान रहित ययेलो ते पुद्गल परिव्राजक आलभिका नगरीनी बचे थईने नीकळे छे. नीकळीने यावद् उत्तरपूर्व (ईशान) दिशा तरफ जह स्कंदकनी पेठे ते पुद्गल है परिव्राजक त्रिदंड, कुंडिका यावद् मूकी प्रवजित थाय छे, बाकी बधुं विकराजर्पिनी पेठे यावद् "सिद्धो अव्यावाध अने शाश्वत सुखने अनुभवे छे' त्यांसुधी जाणवं. 'हे भगवन् ! ते एमज छ, हे भगवन् ! ते एमज -एम कही यावद् भगवान् गौतम अविहरे २ ॥ ४३६ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना ११ मा प्रतक्रमा गरमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ॥ इति एकादश सयं समत्तं ॥ KROACHIKARAN SAKAKKारवल - For Private And Personal

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