Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 189
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञ सिः ॥१-२२॥ *-* www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नथी, पण मारी पोषधशालामां ब्रह्मचर्यपूर्वक, मणि अने सुवर्णनो त्याग करी माला, उद्वर्तन अने विलेपनने छोडी शस्त्र अने मुसल विगेरेने मूकीने तथा डाभना संधारा सहित मारे एकलाने - बीजानी सहाय शिवाय पोषधनो स्वीकार करी विहरषु श्रेय छे.' एम | विचार करी, श्रावस्ती नगरीमां ज्यां पोतानुं घर के अने ज्यां उत्पला श्रमणोपासिका रहे छे, त्यां आवी उत्पला श्रमणोपासकाने पूछी, ज्यां पौषघशाला छे त्यां जद, पोषवशालामां प्रवेश करी, पोषघशालाने प्रमार्जी निहार अने पेशाब करवानी जग्याने प्रतिलेही तपासीने डामनो संथारो पाथरी तेना उपर बेठो, बेसीने पोपधशालामां पोषधग्रहण करी ब्रह्मचर्यपूर्वक यावत् पाक्षिक पोषधनुं पालन करे छे. तए णं ते समणोवासगा जेणेव सावस्थी नगरी जेणेव साई गिहाई तेणेव उवाग०२विपुलं असणं पाणं खाइम साइमं उबक्खडावेंति उ० २ अन्नमन्ने सङ्घावेंति अ० २ एवं बयासी - एवं खलु देवागुप्पिया ! अम्हेहिं से विउले असणपाणखाइमसाइमे उवक्खडाविए, संखे य णं समणोवासए नो हव्यमागच्छड, तं सेयं खलु देवाणुपिया ! अम्हं संखं समणोबासगं सहावेत्तए । तए णं से पोक्स्खली समणोवासए ते समणोवासए एवं वग्रासी -अच्छन्तु णं तुझे देवाणुपिया ! सुनिच्या वीसत्था अहन्नं संखं समणोवासगं सद्दावेमित्तिकट्टु तेसिं समणोवासगाणं अंतिमाओ पडिनिक्खमति प० २ सावत्थीए नगरीए मज्झमज्झेण जेणेव संखस्स समणोवासगस्स वि उवाग २ संखस्स समणोवासगस्स सिंहं अणुपविट्टे । तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्स्खलिं समणोवासयं एजमाणं पासह पा० २ हट्ठतुट्ट आसणाओ अन्भुट्ठेह अ० २ ता सत्तट्ट पपाई अणुगच्छङ २ पोक्खलिं समणो For Private And Personal १२ शतके उद्देशः १ ||१०२२॥

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