Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्यास्थाप्रवशिः ॥१०१४||
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पण्णत्ता, तत्थ णं इसि भद्दपुत्तस्सवि देवस्स चत्तारि पलिओ माई ठिती भविस्सति । से णं भंते । इसि भद्दपुत्ते देवे तातो देवलोगाओ आउक्खणं भव० ठिइक्वएणं जाव कहिँ उववज्जिहिति ?, गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्शिहिति जाव अंतं काहेति । सेवं भंते! सेवं भंते । ति भगवं गोपमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरह (सूत्रं ४३५) । [०] 'हे भगवन्' ! ए प्रमाणे कही भगवान् गौतमे श्रमण भगवंत महावीरने वांदी अने नमस्कार करी आ प्रमाणे कशुं- 'हे भगवन् ! श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र आप देवानुप्रियनी पासे दीक्षा लइ गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने लेवाने समर्थ छे १ [[अ०] हे गौतम! आ अर्थ यथार्थ नथी; पण हे गौतम ! श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र घणा शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत प्रत्याख्यान | अने पौषधोपवासो वडे तथा यथायोग्य स्वीकारेल तपकर्म वडे आत्माने भावित करतो घणां वरसो सुधी श्रमणोपासक पर्यायने पाली, मासिक संलेखनावडे आत्माने सेवी, साठ भक्तो निराहारपणे वीताची आलोचन अने प्रतिक्रमण करी, समाधिने प्राप्त थह मरण समये काल करी सौधर्मकल्पमा अरुणाभम नामे विमानमां देवपणे उत्पन्न थशे. त्यां केटलाक देवोनी चार पल्योपमनी स्थिति कही छे; तेमां ऋषभद्रपुत्र देवनी पण चार पल्योपमनी स्थिति हशे [प्र० ] हे भगवन् ! पछी ते ऋषभद्रपुत्र देव ते देवलोकधी आयुषनो क्षय थया पछी, भवनो क्षय थया पछी, अने स्थितिनो क्षय थया बाद यावत् क्यां उत्पन्न थशे ? [अ०] दे गौतम ! महाविदेह क्षेत्रमां सिद्धिपद पामशे यावत् सर्व दुःखोनो अन्त- नाश करशे. हे मगवन् । ते एमज छे, हे भगवन् ! से एमब छे-एम कही भगवान् गौतम यावत् आत्माने भावित करता विहरे छे. ।। ४३५ ।।
तरणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयावि आलभियाओ नगरीओ संखवणाओ चेहयाओ पडिनिक्ख
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११ शतके
उद्देशः१५ १०२४॥

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