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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ९६४ा
PREMIKARORASit
| (सर्वाकाशना) 'अनन्तमा भाग न्यून छे'. [प्र०] हे भगवन ! अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाशप्रदेशमां शुं १ जीवो २ जीवना देशो ३ अजीवो, ४ अजीबोना देशी अने ५ अजीवना प्रदेशोछे । [उ०] हे गौतम ! जीवो नथी, पण जीवोना देशो, जीवोना प्रदशो, अजीवो, अजीवना देशो अने अजीवना प्रदेशो छे. तेमां त्यां जे जीवोना दशो छे ते अवश्य १ एकेन्द्रियजीवोना देशो छे २ अथवा
P११शतके
उद्देशन एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रिय जीवनो देश छे, ३ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रियोना देशो छे. ए प्रमाणे
॥९६४॥ मध्यम भंगरहित बाकीना विकल्पो यावद् अनिन्द्रियो-सिद्धो संबन्धे जाणवा. यावद् 'एकेन्द्रियोना देशो अने अनिन्द्रियोना देशो'
छे, तथा त्यां जे जीवना प्रदशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छे, १ अथरा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो अने एक बेइन्द्रिय है जीवना प्रदेशो छे, २ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदशो अने चेइन्द्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे यावत् पंचेन्द्रिय अने अनिन्द्रिय अने |
अनिन्द्रियो संबन्धे प्रथम भंग शिवाय त्रण मांगा जाणवा. तथा त्यां जे अजीबो छे ते वे प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-रूपिअ. जीव अने अरूपिअजीव. तेषां रूपिअजीवो पूर्व प्रमाणे जाणवा. अने जे अरूपिअजीबो छे ते पांच प्रकारना कह्या के. ते आ प्रमाणे-१
नोधर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायनो देश, २ धर्मास्तिकायनो प्रदेश, ए प्रमाणे ४ अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू, अने ५ अद्धा समय. Pा तिरियलोगखेत्तलोगस्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे किं जीवा०, एवं जहा अहोलोगखेत्तलोगस्स तहेव, एवं उडलोगखत्तस्सवि, नवरं अद्धासमओ नस्थि, अरूवी चउब्विहा । लोगस्स जहा अहेलोगखत्तलोगस्स पगंमि आगासपएसे ॥ अलोगस्म ण भंते! एगमि आगासपएसे पुच्छा, गोयमा! नो जीवा नो जीवदेसा तं चेव जाव अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते मब्बागासस्स अणंतभागूणे ।। दब्बओणं अहेलोगखेत्तलोए अणताई जीव
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