Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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प्रचतिः ॥९८७॥
HEALTKRREEKAR
ते बल नरपति स्वानगृहथी बहार नीकळे छे, बहार नीकळीने ज्यां बहारनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आयीने पूर्व दिशा सन्मुख उत्तम सिंहासनमा से छे. त्यार वाद पोतानाथी उत्तरपूर्वदिशामां-ईशान कोणमां धोळा दस्तथी आच्छादित अने सरसव
११शतके वडे जेनो मंगलोपचार करेलो छे एवा आठ भद्रासनो मूकावे छे. त्यार बाद पोतानाथी थोडे दूर अनेक प्रकारना मषि अने रनथी | उद्देशार मुशोभित, अधिक दर्शनीय, कीमती, मोटा अहेरमां बनेली, सक्ष्म सूतरना सेंकडो कारागरीवाळा विचित्रताणाचाळी, तथा ईहामृग अने ला॥१८॥ | बळद वगेरेनी कारीगरीयी विचित्र एवी अंदरनी जवनिकाने-पडदाने खसेडे छे, खसेडीने (जवनिकानी अंदर) अनेक प्रकारना मणि
अने रनोनी रचना वडे विचित्र, गादी अने कोमळ गालमीयावी ढंकायेलु, श्वेत वखवडे आच्छादित, शरीरने सुखकर स्पर्शवाळु तथा |सुकोमळ एवं एक भद्रासन प्रभावती देवी माटे मूकावे . त्यार पछी ते बल रजाए कौटुंचिक पुरुषोने चोलावी आ प्रमाणे का
खिप्पामेब भो देवाणुप्पिया! अटुंगमहानिमित्तमुत्तत्थधारए विविहसत्यकुसले सुविणल क्वणपाढए। | सद्दावेह, तए णं ते कोडेबियपुरिसा जाव पडिमणेत्ता बलस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्ख. मित्ता सिग्धं तुरिय चवलं चंडं वेइयं हत्यिणपुर नगरं मज्झमज्झेणं जेणेव तेर्सि सुविणलवणपाढगाणं गिहाई तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता ते सुविणलक्वणपाढए सदाति।तए ण ते सुविणलक्खणपाढगावलस्स रन्नो कोडंबियपुरिसेहि सद्दाविया समाणा हहतुट्ठण्हाया कय जाव सरीरा सिद्धत्थगहरियालियाकयमंगलनुदाणा सरहिं २ गिहेहिंतो निग्गच्छति स.२ हथिणापुर नगरं मझमझेण जेणेव बलस्स रको भवणवरवडेंसए तेणेव ४ उवागच्छन्ति तेणेव उवागछित्ता भवणवरवडेंसगपडिदुवारंसि एगओ मिलंति एगओ मिलित्ता जेणेव बाहि
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