Book Title: Bhagvati Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या
प्रज्ञसिः
॥९३६॥
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कंया पदार्थनो आहार करे ? [अ०] हे गौतम । ते जीवो द्रव्यथी अनन्तप्रदेशिक द्रव्योनो आहार करे, इत्यादि सर्व आहारक उद्देशकमां वनस्पतिकाथिकोनो आहार कह्यो छे ते प्रमाणे यावत् 'तेओ सर्वात्मना - सर्व प्रदेशोए आहार करे छे.' त्यां सधी कहेवं, परन्तु एटलो विशेष छे के तेओ अवश्य छए दिशीनो आहार करे छे, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणबुं.
सिणं भंते ! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?, गोयमा ! जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दस वासस हस्साई ३० । तेसि णं भंते ! जीवाणं कति समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ समुग्धाया पण्णत्ता, तंजावेदणासमुग्धाए कसायस० मारणंतियस० ३१ । ते णं भंते ! जीवा मारणंतियम मुग्धारणं किं समोहया मरंति अममोहया मरंति ?, गोयमा ! समोहयावि मरंति असमोहगाव मरंति ३२ । ते णं भंते । जीवा अणतरं उव्वहित्ता कहिं गच्छति कर्हि उववज्जेति किं नेरइएस उपवनंति तिरिक्खजोणिएसु उवव० एवं जहा वर्कती उवणाए वर्णस्मइकाइयाण तहा भाणियव्वं । अह भंते! सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता उप्पलमूलत्ताएं उप्पलकंदत्ता उप्पलनालत्ताए उप्पलपत्तत्ताप उप्पलकेसरत्ताएं उप्पलकन्नियत्ताए उप्पलधिभुगत्ताएं उबवन्नपुव्वा !, हंता गोयमा ! असति अदुवा अणतक्खुत्तो । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति ३३ ॥ ( सूत्रं ४०९ ) ।। उप्पलुद्देस ॥ ११-१॥
[प्र० ] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवोनी स्थिति (आयुष) केटला काल सुधी कही है ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी दस हजार वर्षनी स्थिति कही . [ प्र० ] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवोने केटला समुद्घातो का छे ? [अ०] दे
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११ चाके
उद्देशः १ ॥९३६॥

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