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भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य |
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नहीं उठा सकते थे, अतः उन्हीं सिद्धान्तशास्त्रों के मूलाधार पर इन मुनिवरने सार्वजनिक हितके अर्थ तत्कालीन प्रचलित भाषामें अत्यंत सरल और सुगम रूपसे प्रत्येक सैद्धान्तिक विषय पर छोटी २ पुस्तकोंकी रचना की और सिद्धान्त सम्बंधी साहित्यका सर्वत्र प्रचार किया जिससे उस समयका भारत तो उपकृत हुआ हो, बादमें भी विद्वान आचार्योंने इनकी क्षीरोदधि सदृश्य गूढ विषयक रचनाओंसे दुग्धधारायें लेलेकर जैन धर्मरूपी कल्पद्रुमका सिंचन किया |
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इन सब वास्तविक घटनाओंका विचार करके सहज ही अनुमान किया जासकता है कि इन आचार्यवरका जैनाचार्योंमें, विशेषतः दिगम्बर शास्त्रकारों में कितना ऊंचा आसन रहा है जो आजतक उनकी स्मृति कृतज्ञ हृदयों को प्रकाशमान कर रही है । वस्तुतः जयंतक पृथ्वीतलपर जैन सिद्धान्तका अस्तित्व है इन आचार्यवरका नाम भी अमर रहेगा ।
नामोल्लेख |
प्राचीन आख्यायिकाओंके आधारपर जैन संसारमें इनके छः नाम अर्थात् - (१) कुन्दकुन्द, (२) पद्मनंदि, (३) वक्रग्रीव, (४) एलाचार्य; (५) गृद्धपिच्छ, और ( ६ ) महामंती प्रसिद्ध हैं ।
नंदिसंघ सम्बन्धी विजयनगरके शिलालेख में जो लगभग संवत् १३८३ ई० अर्थात् विक्रमकी १५ वीं शताव्दिमें लिखा गया, महामतीके अतिरिक्त इनके उपर्युक्त" शेष पांच नाम दिये हैं । और नं दिसंघकी पट्टावलिमें भी जिसका समय निश्चित नहीं है, इन्हीं पांच नामों का उल्लेख है ।
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