________________
३६ ]
भंगवान् कुन्दकुन्दाचार्य |
AC1. 1, 1
प्राप्त नहीं हैं जो होनी अवश्य चाहिये। क्योंकि तभी दशकी संख्या
पूरी हो सकती है ।
प्राकृत गद्य और पद्यकी विचारपूर्वक तुलना करनेसे यह स्पष्ट जान पड़ता है कि इन दोनों का कर्ता कोई एक विद्वान नहीं है ।
इनमें से सिद्धभक्तिकी क्रिया-कलाप नामक टीकाके निर्माता श्री प्रभाचन्द्राचार्यने लिखा है कि इन भक्तियोंको प्राकृत भाषामें श्री कुन्दकुन्दाचार्यन और संस्कृत भाषामें श्री पूज्यपादस्वामीने निर्माण किया । इस धारणा या निश्चयका कोई सप्रमाण विरोध नहीं है । इन भक्तियोंकी अंतिम गद्य श्वेताम्वरीय प्रतिक्रमण और आवश्यक सूत्रोंसे बहुत कुछ मिलती जुलती है, और तीर्थंकरभक्ति दिगम्बरी तथा श्वेताम्बरी दोनों सम्प्रदायोंमें समानरूपसे मान्य है |
अनागार भक्तिमें साधुके गुणोंकी गणना उसी प्रकार दी है जैसी श्वेताम्बरी सिद्धान्तके थानांग और सम्वायांग शास्त्रमें दे रक्खी है।
·
निर्वाण भक्तिके अन्तमें कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीकी रात्रिके अन्तमें सूर्योदय से कुछ पूर्व स्वांति नक्षत्र के समय भगवान महावीरका निर्वाण होना लिखा है, जब कि चतुर्थकालमें ३ वर्ष ३ मा १५ दिन शेष रहे थे, ऐसी ही श्वेताम्बर मान्यता है ।
इस साम्यपर विचार करनेसे यह अनुमान होता है कि गद्य भागकी रचना जिन धर्मानुयायियों में दिगम्बर और श्वेताम्बर नामक संघभेद होने से पूर्व किसी समय हुई थी ।
''''
हस्तलिखित प्रतियों में गाथा संख्या न्यूनाधिक भी पाई जाती है और किसी किसीके अन्तमें नमस्कार मंत्र, मंगलसूत्र, लोको चम सूत्र,