________________
.am.......morni.
vi. .AMRATiger
भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य। [३९ anwarwww मूलाचारकी क्रमशः गाथा नं० २३१, ९६६, ११९७, ११९१; २०१, २०३, २४७ हैं। लिंग पाहुड़के मंगलाचरणका पूर्वार्ध, मूलाचारके पटावश्यक अधिकारके मंगलाचरणका पूर्वार्ध है।
इसी प्रकार श्री कुंदकुन्दाचार्य कृत प्राभृतोंकी और भी अनेक गाथायें ( समूची, पूर्वार्ध, उत्तरार्ध, एकपाद) तदनुरूप या कुछ सामान्य पाठभेद या शाब्दिक परिवर्तनके साथ मूलाचारमें पाई जाती हैं।
इस ग्रन्थकी भाषा और मार्मिकता श्री कुंदकुंदस्वामीकी अन्य रचनाओं के साथ ऐसी समानता रखती है कि इस ग्रंथके स्वाध्यायसे यह संदेह भी कहीं उत्पन्न नहीं होता है कि इसमें किसी अन्य ग्रन्थकारकी कोई गाथा क्षेपक या उक्तंच रूपसे लिख दीगई है।
अत: इस तुलनात्मक दृष्टि से अनुसंधान करनेपर यही निश्चय होता है कि-'बारस अणुवेरखा' और अन्य प्राभूतोंके कर्ता (कुंदकुन्दाचार्य) ही मूलाचार ग्रंथके रचयिता हैं।
यदि इस ग्रंथके कर्ता कुन्दकुन्दाचार्यसे भिन्न कोई व्यक्ति हैं तो वह समान योग्यताके विद्वान, कवि और मर्मज्ञ होने चाहिये। फिर यह समझना कठिन है कि मूलाचारके कर्ता जो इतने विशालं और गूढ ग्रन्थकी रचना करनेको समर्थ थे, मंगलाचरणकी गाथायें भी दूसरे ग्रंथोंसे उठाकर क्यों रख देते ? क्या उसी भाव और आशयकी दश वीस गाथायें स्वयं नहीं लिख सकते थे ?
यदि उन्होंने किसी कारणवश ऐसा किया भी था तो अन्य आचार्य कृत गाथाओंको प्रमाणवाक्यके रूपमें उद्धृत करते। कर्ताका नामोल्लेख किये विना स्वरचितं पद्यके रूपमें एक कविके पद्यको चुराकर इंस