Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 64
________________ "४६] भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य। འདབ ་ ་ ་ ་ དབ འ ་་ ་་ ་ མ་ (३) मूलाचार । यह मुनि धर्मका महान् ग्रंथ है। इसमें १२ अधिकार और १२४३ गाथायें हैं। पहले मूलगुणाधिकारमें प्रमत्त गुणस्थानसे अयोगकेवली पर्यन्त -सर्व संयमियोंको नमस्कार करके आचार्यवरने अहिंसा, अस्तेय, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-पांच महाव्रत, ईर्टी (गमन) भाषा, ऐषी (भोजन) आदाननिक्षेपण, प्रतिष्ठापना, पांच समिति, पंचन्द्रिय निरोध (सामायक); चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग, 'षडावश्यक, केशलोंच, आचलक्य (नममुद्रा), अस्नान अदेतवन, क्षितिशयन (भृमिशय्या), स्थिति भोजन, और एकभक्त साधुओंके इन २८ मूलगुणों का विस्तृत वर्णन किया है। दूसरे वृहद प्रत्याख्यान संस्तरस्तवाधिकारमें प्रत्याख्यान अर्थात् पापक्रियाओं एवं दुश्चारित्रके कारणोंका -मन, वचन, कायसे त्यागने और समभाव रूप निर्विकल्प निर्दोष संयम करनका, और प्रतिक्रमण अर्थात् मूलगुण या उत्तरगुणोंमसे किसीका आलस्यवश आराधन न करने पर अपने दोषोंकी निंदा करने, असंयम, अज्ञान, मिथ्यात्व, ममत्व रूप भावोंका त्याग करने, सात भय, आठ मद, आहार, मैथुन, भय, परिग्रहकी अभिलापा रूप चार संज्ञा, ऋद्धि, रस, साता (सुख) रूप तीन गौरव (गर्व) जीवादि पञ्चास्तिकाय, पृथ्वी आदि छ:निकाय, ५ महाव्रत, ५ समिति, ३ गुप्ति, ९ पदार्थ, इन तैतीस पदार्थों की आसादना (परिभव) अर्थात् सशंकित या अन्यथा रूप 'धारणा, रागद्वेष इन सब भावोंका परित्याग करने, तथा आलोचना अर्थात् -गुरुके समीप अपने दोषकी निंदा करते हुये सरलतासे प्रकट करने,

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