Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 63
________________ [ ४५ 1118 (५) अनागार भक्ति - २३ गाथाओं में समस्त धर्मरत मुनि - योंको वंदना की गई है। दूसरेसे १४ गुणस्थान तकका विस्तृत वर्णन किया है और उनके व्रतादिक लेने एवं तपस्या करने के नियमों और साधनोंकी व्याख्या की है । अन्तमें कर्मजनित दुःखोंसे छूटने की प्रार्थना है । भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य | (६) आचार्य भक्ति - १० गाथाओंमें आदर्श उपदेष्टा और मुनि संघानुशासक आचार्यक गुणोंका वर्णन किया है जो भव्यात्माओको मुक्तिमार्गकी ओर आकृष्ट करनेको समर्थ हैं। ऐसे महामुनिको पृथ्वी समान सहनशील, जलसदृश्य शीतल स्वभाव, आकाशरूप विशुद्ध मन और समुद्रतुल्य गम्भीर व्यक्त करके श्रद्धापूर्वक उनकी अभिवंदना की है । (७) निर्वाण भक्ति - २७ गाथा, इसमें यह कथन करके कि २४ तीर्थकरों और अन्य पुनीत आत्माओंने कहां कहांसे निर्वाण प्राप्त किया है, समस्त सिद्ध आत्माओं और सिद्ध क्षेत्रोंकी वन्दना की है । भगवान महावीरके निर्वाणकी तिथि, समय आदिका भी निरूपण किया है । (८) पंचपरमेष्ठी भक्ति - ७ पद्योंमें है । प्रथम छः पद्य तो सुगविणी (मात्रावृत ) छंदके हैं जिनके द्वारा अर्हत, सिद्ध, आचार्य,. उपाध्याय और सर्वसाधु इन पांच परमेष्ठियोंका गुणानुवाद किया है,. अन्तमें एक गाथा द्वारा अविनाशी सुखकी प्राप्तिके लिये आकांक्षा की है। : ( ९ - १०) नंदीश्वर भक्ति और शांतिभक्ति अप्राप्य हैं। अतः इनके विषयमें कुछ नहीं कहा जासकता | Is

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