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भगवान कुन्दकुन्दाचार्य। [३५ कुंदकुन्दस्वामी जैसे सिद्धान्तके मर्मज्ञ विद्वान ही उस महाग्रन्थकी इतनी विस्तृत व्याख्या लिखनेको समर्थ होसकते थे न कि उनके एक साधारण शिष्य जिनका आजतक भी कोई नाम नहीं जानता । यदि कुंदकीर्तिने वास्तवमें यह टीका लिखी होती तो वह आचार्य मण्डल और शास्त्रकारोंकी सूचीमें अवश्य कोई सुप्रसिद्ध और गण्य व्यक्ति होते । परन्तु हम देखते हैं कि किसी शास्त्र, किसी शिलालेख या पट्टावलिमें इनका नामोल्लेख तक नहीं मिलता। अतः इन्द्रनंदिके कथनानुसार यही मानना अधिक युक्तिसंगत है कि परिकर्म नामक व्याख्याके रचयिता हमारे चरित्रनायक ही थे।
खेद है कि इनकी यह सद्कृति काल दोषसे या हमारे प्रमादसे आज प्राप्त नहीं है। इसलिये इस विषयमें कोई तुलनात्मक, अनुसंधान नहीं किया जासकता ।
दशभक्ति संग्रह। इस रचनामें तित्थयरभत्ती, सिद्धभत्ती, सुदभत्ती, चारितभत्ती, अणागारभत्ती, आयर्यभत्ती, निवाणभत्ती, पञ्चपरमेट्टीभत्ती, णेदीसरभत्ती
और शान्तिभत्तीका संग्रह है। , इस भक्ति संग्रहकी रचना इस प्रकार उपलब्ध है कि पहिले प्राकृत गाथायें हैं । फिर उनके अनुवादरूप संस्कृत श्लोक हैं, और
अन्तमें प्रास्त भाषाकी गद्य दी हुई है, जिसमें प्रतिक्रमण और आलो'चनाका वर्णन है। ... ... . .. . .
इस समय नंदीश्वर भक्ति और शान्तिभक्तिकी प्राकृत गाथायें