Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 22
________________ ४ ] भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य | दिगम्बर आचार्योंकी पट्टावलियोंके तुलनात्मक निबंधमें डाक्टर हर्नल (Hornele) साहबने भी यही पांच नाम व्यक्त किये हैं । श्रुतसागरसूरिने जिनका समय ईसाकी १५ वीं शताब्दि है, कुंदकुंदाचार्य कृत पटपाहुड़की टीकामें यही पांच नाम दिये हैं परन्तु मिष्टर ग्वरिनाट साहवने जैन शिलालेखों के विवरण में नं० २५६ पर इन पांच नामोंके उपरांत इनका छठा नाम महामती भी लिखा है, जिसका अन्य किसी विश्वस्त सूत्रसे समर्थन नहीं होता । संभव है किसी शिलालेख के निर्माता कविने कहीं इन आचार्यवरको परम सिद्धांत वेत्ता और प्रकाण्ड वक्ता होनेके कारण इनका स्तुति गान करते हुए महामती कहकर भी सम्बोधन किया हो । परन्तु मात्र इस हेतुसे यह सिद्ध नहीं होता है कि इन आचार्यवरका महामती भी कोई उपनाम " था, न यह आचार्य इस नाम से प्रसिद्ध ही हैं । अतः महामती के अतिरिक्त इनके अन्य प्रसिद्ध पांच नामोंके विषय में ही विशेष अनुसंधान करना आवश्यक है । ܕ ܬ १ -- कुन्दकुन्द । हमारे पूज्य चरित्रनायकका यह नाम इतना लोकप्रसिद्ध और अन्यान्य शास्त्र वर्णित है कि इसे स्वयं सिद्ध ही मान लेना चाहिये । इसके अतिरिक्त स्वयं आचार्यवरने अपनी एक पावन कृति - ." वारस अणुवेरख्खा " ( द्वादश अनुप्रेक्षा) में अपना यह नाम व्यक्त . किया है | अतः इस नामका उल्लेख साध्य कोटिमें ही नहीं रहता । यद्यपि इस पुस्तककी किसी २ हस्तलिखित प्रतिमें संभवतः प्रतिलिपि कर्ताकी किसी भूलके कारण यह नाम निर्देषक अन्तिम

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