Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 33
________________ •ommenna....... ... ....... ..www.ranews . भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य । [१५ तदीयवंशाकरतः प्रसिद्धादभूतदोपायति रत्नमाला । वभौ यदन्त भणिवान्सुनींद्रस्स कुन्दकुन्दोदित चण्डदण्डः ॥ ___ इन शिलालेखोंके आधारपर इन आचार्यवरको महाराजा चंद्रगुप्त मौर्य सम्राटका वंशज मान लेनेपर भी यही धारणा ठीक होगी कि इन आचार्यवरके जन्मस्थान, कुल, जाति, मातापिताके नाम तथा गाहस्थिक जीवनका निश्चयात्मक परिचय देनेके लिये कोई प्रमाणिक और विश्वस्त सामग्री उपलब्ध ही नहीं है । पान्तु ऐसे महत्त्वशाली लोकप्रसिद्ध आचार्यके जीवन चरित्रमें इनका गृह-जीवन या पारिवारिक परिचय देना विशेषरूपसे कुछ आवश्यक भी नहीं है। तस्यात्मजस्तस्य पितेति देव त्वां, येऽवगायन्ति कुलं प्रकाश्य। तेऽद्यापि नवाश्मनमित्यवशं, पाणोकृतं हेमपुनस्त्यजन्ति ।। अर्थत्-हे देव ! जो लोग आपका कुल प्रकट करके आपकी प्रशंसा करते हैं कि आप अमुकके पुत्र और अमुकके पिता हैं वे मानो हाथमें आये हुये स्वर्णको पत्थर समान फेंकते हैं । तात्पर्य यह है कि पूज्य और स्तुत्य व्यक्तियोंकी प्रशंसा तो केवल उनके निज गुणोंकी अपेक्षासे ही की जाती है और की जानी चाहिये । कुल, जाति, पुत्र, पिता आदिका परिचय उनके गुणानुवादके लिये बिल्कुल निरर्थक है। __.. गुरुसम्बन्ध। . . . . इन आचार्यवरने स्वयं अपने गुरुकुलकी : भी.. प्रशस्ति अपनी किसी रचनामें नहीं दी। कुछ विद्वानोंका विचार है कि स्वयं आचार्य

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