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भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य।
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कटिवद्ध रहते थे। यह दूसरी बात है कि वे शास्त्रार्थमें प्रसिद्ध आख्यायिकाके अनुसार आचार्यवरसे परास्त हुये।
किसी नवीन स्थापित संघके इतने उत्कर्षपर पहुंचनमें १००१५० वर्षका समय अनुमान करना कुछ अधिक नहीं है । अतः इससे भी श्री कुंदकुंदाचार्यके अनुमानित समयका समर्थन होता है। ' मर्कराताम्र पत्र में जो शा० स. ३८८ (वि • सं० १२३ ) का लिखा हुआ है, कुन्दकुन्दान्वयी गुणचन्द्रकी पांच पीढियोंका क्रमशः उल्लेख है जिनका समय कमसे कम सौ सवासौ वर्ष निस्संदेह माना जासकता है।
___ इन सब उक्तियों. युक्तियों और साक्षियोंके आधारपर हमारे चरित्रनायक स्वामी कुन्दकुन्दाचार्यका जीवन समय वि० सं० २०४ से ३०० तक सिद्ध होता है।
विदेह गमन। जैनजगतमें इन आचार्यवरकी विदेह यात्राकी कथा अविरोध रूपसे प्रचलित है । कहते हैं कि इनके ध्यानकी स्थिरता और मनकी निश्चलता बहुत उच्च कोटिकी थी । एकवार जब इन्हें किसी सैद्धा. न्तिक विषय पर शंका उत्पन्न हुई और बहुत विचार करनेपर भी स्वयं उसका निरसन न कर सके तो उन्होंने ध्यानमग्न होकर तन्मयतासे विदेह क्षेत्रमें विद्यमान तीर्थकर श्री सीमंदरस्वामीको मन, वचन, कायकी शुद्धिपूर्वक नमस्कार किया। इनके मनोबल और तपस्तेजके प्रभावसे समोशरणमें विराजमान तीर्थकर भगवानने इनके प्रणामको स्वीकार