Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 32
________________ १४] ..... भगा त हासिक भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य। -rn • Irrrrrrr . . .. ... ... ... ...rnam इसप्रकारकी विरोधात्मक और कल्पित कथायें ऐतिहासिक सामग्रीके रूपमें ग्रहण नहीं की जा सकतीं। हां! श्रुतावतारके आधारपर अधिकाधिक इतना कहा जा सकता है कि हमारे चरित्रनायक आचार्य दक्षिण भारतके कौण्डकुन्दपुर नगरके वासी उस समय थे जब उन्होंने गुरुसे ज्ञान प्राप्त किया था परन्तु निश्चयरूपसे यह नहीं कह सकते कि यह नगर इनका जन्मस्थान अथवा बालक्रीड़ागृह भी था, संभव है कि इस नगरमें भी धर्मप्रचारार्थ कोई मुनि संघ स्थापित हो जिसका अनुशासन करनेके लिये हमारे चरित्रनायक आचार्यरूपसे वहां निवास करते रहे हों, तभी तो यह इस स्थानके सम्बंधसे वहांके आचार्य अर्थत् कौण्डकुन्द या कुन्दकुन्द आचार्य प्रसिद्ध हुये। श्रवणबेल्गुलके १० वें शिलालेखमें इनको चंद्रगुप्त ( मौर्य - सम्राट) का वंशज व्यक्त किया है। यथा श्री भद्रस्सर्वतो यो हि, भद्रबाहुरितिश्रुतः। , श्रुतकेवलिनार्थषु, चरमः परमो मुनिः।। चन्द्रप्रकाशोज्ज्वलसांद्रकीर्तिः, श्रीचन्द्रगुप्तोऽजनितस्य शिष्यः। यस्य प्रभावाद्वनदेवताभिराराधितः स्वस्य गणो मुनीनां ॥ तस्यान्वये भूविदिते वभूव यः पद्मनन्दिप्रथमाभिधानः । श्रीकोण्डकुन्दादिमुनीश्वराख्यस्सत्संयमादुद्गतचारणार्द्धिः ।। · , इसी प्रकार शिलालेख नं० १०८ में भी वर्णन किया है। तदीयशिष्योजनि चन्द्रगुप्तः, समग्रशीला नतदेववृद्धः । 'विशेषय तीव्रतपःप्रभाप्रवभूतकीर्तिर्भुवनांतराणि ॥

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