Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 31
________________ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य | [ १३ रामचन्द मुमुक्षुने शाका सम्वत् १७३१ में मरहठी भाषामें किया है, उसमें यह कथा दी गई है जिसकी यथार्थता सहसा विश्वसनीय नहीं है। आराधना कथाकोष में भी जो सन् १९०७ ई० में संपादित हुआ है, यह कथा लिखी है जिसमें ग्वालाका नाम गोविंद बताया है और कहा है कि उसने एक गुफा में कोई शास्त्र पाया जिसे लाकर उसने पद्मनंदि मुनिको भेट किया । यह वही शास्त्र था जिसका अध्ययन करके बहुत से मुनिजन सिद्धांतके पारगामी हो चुके थे । अतः वह ग्वाला भरकर अगले भवमें शास्त्रदानके प्रभावसे कौंडकुन्द नगरका अधिपति हुआ । और परम पुण्यके पूर्व संस्कारोंसे उसको वैराग्यभाव उत्पन्न होगये जिनसे प्रेरित होकर कौण्ड नरेशने जिन - दीक्षा धारण कर ली, और थोड़े दिन तपस्या करके वह श्रुतकेवली होगये । 1 इस कथा कुन्दकुन्दाचार्यका कुछ सम्बन्ध नहीं जान पड़ता, न उनका कौटुम्बिक परिचय मिलता है । जिस पद्मनंदि मुनिका इस. कथामें नाम आया है वह श्रुतकेवलियोंके प्रादुर्भाव से भी पूर्व किसी समयमें हुये होंगे । ठीक इसी प्रकारकी पुण्याश्रव वर्णित कथा है । इन कथाओंकी वर्णनशैलीपर विचार करनेपर यही भान होता है कि यह कथायें : केवल शास्त्रदानका महात्म्य दिखानेके भावसे दृष्टान्तरूप गढ़ ली गई हैं। ज्ञानप्रबोध वर्णित कथा भी बहुत ही आधुनिक रचना प्रतीत होती है जिसका मूलाधार आर्षग्रन्थ या शिलालेख नहीं है। इसमें राजा रानी और सेठ सेठानीके नाम स्पष्टतः कल्पित जान पड़ते हैं । •

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