Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 27
________________ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य | [ ९ वक्रग्रीव द्राविड संघके गुरु थे । अतः दोनों भिन्न २ व्यक्ति थे । नन्दिसंघकी पट्टावलि में कुन्दकुन्दाचार्य के उत्तराधिकारी रूपसे तदन्वयी तत्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वामीका आचार्य पदपर प्रतिष्ठित होना प्रतिपादित किया है । तत्वार्थाधिगम सूत्रकी वृहद् टीका ' सर्वार्थसिद्धि " के प्रणेता श्री देवनन्दि पूज्यपाद हुये हैं, उनके शिष्य वज्रनन्दिने द्राविड़ संघकी वि० सं० ५२६ में स्थापना की जैसा कि श्री देवसेनसूरीने स्वरचित " दर्शनसार " में प्रतिपादन किया है: ८ 11118 सिरिपुज्जपादसीसो, दाविडसंघस्स कारणो दुट्ठे । णामेण चज्जणंदी, पाहुडवेदी महासत्तो || पंचसये छवीसो, विकमरायस्स मरणपत्तरस | दक्खिनमहाराजादो, दाविडवो महामोहो || इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि जिस द्राविड संघकी उत्पत्ति 'पूज्यपादके शिष्य द्वारा हुई उस संघके गुरु वक्रग्रीव अवश्य पूज्यपाद के पूर्वज आचार्य कुन्दकुन्दस्वामी से भिन्न व्यक्ति थे । अतः हमारे चरित्रनायकका अपर नाम वक्रग्रीव भी कदापि नहीं माना जा सकता । ५-गृद्धपिच्छ । इन आचार्यवरकी विदेह क्षेत्र यात्राके वृत्तान्तमें ज्ञानप्रबोधमें - लिखा है कि मार्ग में जब इनकी पिच्छिका गिर गई तो इन्हें मान• सरोवर के तटपर गृद्ध पक्षियोंके गिरे हुये पंखोंकी पिच्छिका बनाकर • दी गई इससे इनका नाम गृद्धपिच्छ प्रसिद्ध हुआ । दर्शनसार में

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