Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 26
________________ . ८] भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य । सम्भव है प्रान्तीय उच्चारण भेदके कारण इन्हींको एलाचार्य मान लिया जाय । परन्तु यह महामना पलाचार्य द्राविडसंघके मंत्रपाठी और तत्र रचयिता आचाय थे, जो वीरसेनाचार्यके शिक्षागुरु एलाचार्यसे भी पीछे हुये हैं, जिन्होंने ईसवी सन् ९३९ में ज्वालिनीमतकी स्थापना की । अतः हमारे चरित्रनायकका यह नाम नहीं होसकता । ४-वक्रग्रीव । सर्व प्रथम इस नामके एक आचार्यका उल्लेख सं० ११२५ के शिलालेखमें द्राविड संव असंगलान्वयकी गुर्वावलिमें मिलता है। इसके बाद स०. ११२९ के श्रवणवेलगोलके शिलालेखमें यह नाम आया है । इसकी पांचवी गाथामें लिखा है कि कोण्डकुन्द सभीके सन्मान करने योग्य हैं। क्योंकि इनके ज्ञान-कमलकी सुगंधि चारों ओर फैल रही है, आदि । गाथा ६ से १ तक श्री समंतभद्र और सिंहनन्दि आचार्यों का गुणगान किया है, १० वीं गाथामें वक्रग्रीवकी प्रशंसा की गई है कि वह एक महत्वशाली वक्ता और सभाजीत विद्वान थे। इस शिलालेखकी क्रमवद्ध वर्णनशैलीसे स्पष्ट विदित होता है कि वक्रग्रीव नामके आचार्य हमारे चरित्रनायक आचार्यसे भिन्न विद्वान व्यक्ति थे जो उनसे बहुत पीछे हुये हैं। इसके अतिरिक्त सं० ११३७-११५८-११६८ के शिलालेखोंमें वक्रग्रीवके सम्बन्धमें कथन है परन्तु यह कहीं नहीं लिखा है कि कुन्दकुन्द और चक्रग्रीव एक ही व्यक्तिके नाम हैं। . निस्संदेह कुन्दकुन्दस्वामी नन्दिसंघके मान्य आचार्य थे और

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