Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 25
________________ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य। . [७. शिक्षा प्राप्त की थी, उस सिद्धान्तका विशेष प्रकरण जयधबल ग्रन्थमें दिया है और उसमें भी ग्रन्थकारने ऐसा ही व्यक्त किया है। जस्स सेसाण्ण मये, सिद्धतमिदिहि अहिलं हुदी। महुसो एला इरिओ, पसियउ वर वीरसेणस्म ।। __ वीरसेन आचार्यकी यह महत्वपूर्ण रचनायें कुन्दकुन्दके बहुत बाद ईसाकी आठवीं शताब्दिकी हैं। इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतारमें एलाचार्यकै विषयमें लिखा है कि वे चित्रकूटके वासी थे, और सिद्धान्तके पारंगत विद्वान थे, तथा वीरसेनने इनसे सिद्धान्तकी शिक्षा प्राप्त की थी। चित्रकूटसे लौटकर वाटग्राममें वीरसेनने घवलग्रंथकी रचना की थी। काले गते कियत्यपि ततः पुनश्चित्रकूटपुरवासी। . श्रीमानेलाचार्यों बभूव सिद्धान्ततत्वज्ञः ॥ १७६ ॥ तस्य समीपे सकलं सिद्धान्तमधीत्य वीरसेनगुरुः । उपरितमनिबंधनायधिकारा नष्ट लिलेख ।। १७७ ।। (श्रुतावतार) इन्हीं इन्द्रनन्दिने श्रुतावतारकी गाथा १६०, १६१ में जो पहिले उद्धृत की जाचुकी हैं पद्मनन्दिको कौण्डकुन्दपुर निवासी लिखा है, जिन्होंने पटखण्डागम महाशास्त्रके प्रथम तीन खंडोंकी परिकर्म नामक विस्तृत टीका रची। इससे सिद्ध होता है कि एलाचार्य और कुन्दकुन्दाचार्य दो भिन्न व्यक्ति थे जिनके शासनकालमें कई शताब्दियोंका अन्तर है। हेमग्राम निवासी एक एलाचार्यका भी उल्लेख मिलता है।

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