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भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य । [५ गाथा नहीं मिलती तथापि इससे आचार्यवरका यह उपनाम होनेका स्वयंसिद्ध विषय संदिग्ध नहीं हो जाता।
इनके प्राभृतत्रयकी सर्व प्रथम " तत्व प्रदीपिका वृत्ति" श्री अमृतचंद्रसूरिने लिखी जो भट्टाकलंकदेवसे पूर्व विक्रमकी छठी शताब्दिमें हुये हैं, क्योंकि उनका उल्लेख भट्ट महोदयने किया है जो विक्रमकी सातवीं आठवीं शताब्दिके विद्वान हैं, परन्तु सूरिजीने मूल कर्ता आचार्यके नामादिके विषयमें कुछ नहीं लिखा ।। ___ हां, प्राचीन शिलालेखोंमें इनका नाम द्राविड भाषा भाषियोंके उच्चारणानुसार प्रायः कोण्डकुन्द पाया जाता है। संस्कृत भाषामें "कुन्दकुन्द" इसीका सरल और श्रुतिमधुर रूप है।
. .२-पद्मनन्दि । श्री इन्द्रनन्दि आचार्यने जो विक्रमकी ११ वीं शताब्दिमें हुये हैं स्वरचित " श्रुतावतार' की गाथा १६०-१६१ में लिखा है कि पद्मनन्दि आचार्य कौण्डकुन्दपुर निवासी थे
एवं द्विविधो द्रव्यभाव, पुस्तकगतः समागच्छन् । गुरुपरिपाट्या ज्ञातः, सिद्धान्तः कुण्डकुन्दपुरे ॥१६॥ श्रीपद्मनन्दिमुनिना सोऽपि, द्वादशसहस्रपरिमाणः । ग्रंथपरिकर्मकर्ता पटखंडायत्रिखंडस्य ॥ १६१ ॥
स्वामी इन्द्रनन्दिने तो इस नामके अतिरिक्त इन आचार्यवरका और कोई वास्तविक या गुणप्रत्यय 'नाम व्यक्त ही नहीं किया। भाभृतत्रयकी "तात्पर्यवृत्ति" नामक बृहद् टीकाके कर्ता श्री जयसेना