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अयोध्या का इतिहास।
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वास ) थो इससे उन्होंने सैकड़ों मनुष्यों के रहने के लिये जगह बनाई । इधर उधर बिखरे मनुष्यों को इकट्ठा करके देवों ने मगर सजाया। नरेन्द्र भवनश्चास्या सुरैर्मध्ये निवेशितम् । सुरेन्द्रनगरस्पर्धि परार्ध विभवान्वितम् ॥७॥ सूत्रामा सूत्रधारोऽस्या शिल्पिनः कल्पजासुराः । बास्तुजातामही कृत्स्ना-सोद्यानस्त कथम्पुरी ॥१५॥
देवों ने इस पुरी के बीच में राजा का प्रासाद बनाया इसमें असंख्य धन धान्य भर दिया जिससे यह, इन्द्र के नगर अमरापुरो की टक्कर का होगया । जब इन्द्र इसके सूत्रधार थे। कल्प के उत्पन्नदेव कारीगर थे और सारी पृथयों में से जो सामान वाहा. सो.लिया । सं च स्कुरुश्च तां वन प्राकार परिखादिभिः । अयोध्यानगरं नाम्ना गुणे नायरिभिः सुराः ॥७॥
फिर देवों ने कोट और खाई से इसे मालकृत किया। . अयोध्या केवल नाम हो से अयोध्या नहीं थी बल्कि बैरियों के लिये अयोध्या थी जिसे कोई जोत न सके।
* श्री जिनसेनाचाय कृत "मादिपुराण' प्र० १२ श्लोक६८, ६९, ७०,७१, ७२, ७३, ७४, ७५, ७६, ७७, ७८ ।