Book Title: Ayodhya ka Itihas
Author(s): Jeshtaram Dalsukhram Munim
Publisher: Jeshtaram Dalsukhram Munim

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Page 33
________________ [२० । योध्या का इतिहास अरिहंतविरामान हैं। भरतेश्वरजी प्रथम वन्दना कर सन्मुख बैठे वहां पर भगवाने ११ पुत्र प्रमुख वाहुवलीजी प्रातः स्मरणीय सती ब्राह्मी सती सुन्दरी जैसी सुशील पुत्रियों को दीक्षा देकर प्रथम आर्या- औ शिष्य वनाके दीक्षित किये श्रीभरतेश्वरजी ये श्रीमयोध्याजी में भगवान के आदेशानुसार कनकमय मन्दिर प्रथम तीर्थराज की स्थापना की जव उवणेउ मङ्गलं वा; जिरणारण मुहलालि जाल संवलिया । तित्थ पवत्तण समये, तिस विमुक्का कुसुम बुट्टी ॥ ऊपर इन्द्र और देवताओं ने श्रीतीर्थपती राज के कुसुम वृष्टि की श्रीजीनेश्वर ऐसे तीर्थ की स्थापना की कि समस्त जीव तीर्थ की आराधना द्वारा संसार के मोह जाल से छूटकर मोक्ष को प्राप्त हो । सम्म सोलछियासि (१६८६ ) श्रावण सुदी सुखकार । रास भय्यो शेत्रुजातगोये; नगर नागरे मझार ॥ खरतर गच्छीय श्रीपूज्य श्रीजिनचन्द्रसूरिश्वर तस्शीष्य सकल चन्द सुजगीस तासशिष्य उपाध्याय समय सुन्दर रास रच्यो जेसल - र म और भयो नागोर मद्धे सं० १६८६ श्रावण सुदी में 1

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