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अयोध्या का इतिहास ।
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मन्दिर पर पूर्व की चैत्यवासी सूरिश्वरों की गद्दी, भेलुपुर, भदैनी, चन्दपुरी, सिंहपुरी, रत्नपुगे और अयोध्या तीर्थ का रक्षण के लिये महासमर्थ प्रयत्न किये, और आपके बाद मंडला चार्य बालचन्द्रजी के पटशिष्य दिग्मण्डलाचार्य श्री नेमचन्द्र सूरिजी ने पूर्व गद्दीधर प्राचार्य सुरिश्वरों का कारोवार सम्भा ल कर तीर्थं रक्षण के लिये कार्य शुरू किया।
इ-स-१८७७ में शेठजी माधवलाल दुगड कलकत्ता वाले को कार्यभार सौंप दिया था जो दस साल के बाद कुछ अव्यवस्थ कागेवार रहा बादमें श्रीनेमचन्द्र महाराजे कलकत्ता वाले सेठजी लाभचन्द मोतीचन्दजी से लिखापढ़ी करके मिरजापुर निवासी मेमर्स धनसुखदास जेठमले फार्म के मालिक मानरेरी मजिस्ट्रेट वाबू मिश्रीलाल जो रेहानी को सोंप्रत किया जो हाल में तीर्थ के ट्रस्टी महाशय के कारोबार में मन्दिर और धर्मशाला हैं।
बौद्ध ग्रन्थो में अयोध्या तीर्थ ।
इण्डियन प्रेस प्रकाशित "हूंयोनचांग" का प्रवास वर्णन परसे उघृत पृ० ३४४ गार्डन माफइण्डिया पृ० ६४, ६५ बुद्धीष्टइण्डिया परसे उद्धृत