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अयोध्या का इतिहास |
कल्याणक १६ : का स्तवन ।
विनीता नगरी है सागरी, विनीत जन वास स्थिरकारी । तीहां हुआ पंच महाराजा, तेणे से तीर्थ है ताजा ॥१॥ आदिजीन, अजित अभिनन्दन, सुमति अनन्त जगमण्डन । इन्हों का ओणीस जाणो, कल्याणक भाई तुम्हीं मानो || २ || पंच प्रभु पंचमी दीजे, गती गुणी लोक जीमरी । दयालु विश्वना छोजी शरीरीने शरण दयो जी ॥ ३ ॥ करू क्या प्रार्थना आजे पोते तुम्हे तारवा काजे । प्रवत्य छो प्रभु मेरा कर्मो का गढ तुम्हें घेरा ॥ ४ ॥ जीनेश्वर देव के नन्दन, ग्रावे इहां संघ लेइ वन्दन । सुधारे धोल के मन्दरं, करावे हंस ज्युं सुन्दर ||५||
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समाप्त
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