Book Title: Ayodhya ka Itihas
Author(s): Jeshtaram Dalsukhram Munim
Publisher: Jeshtaram Dalsukhram Munim

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Page 66
________________ [ ५३ ] इस महान तीर्थराज के विषे पूजा करने से एक गुण पुन्य होता हैं जिन भुवन बनवाने से हजार गुना पुन्य होता हैं और तीर्थ का पालन करने से अनन्त गुणा पुन्य होता है । योध्याका इतिहास । काष्ठादीनां जिनावासे यावन्त परमाणवः । तावन्ति वर्ष लक्षाणि तत्कर्ता स्वर्ग भाग् भवेत् ॥ इस जिन मन्दिर विषे के काष्ट पाषाण में जितने प्रमाणं मौजूद हैं उतने ही लक्ष वर्षप्रयन्त जिन मन्दिर बनवाला स्वर्ग लोक में शिववधुपरि वोधी सत्व को प्राप्त होता है इसलिये सुरिश्वरों ने कहा है । श्रीतीरथ पद पूजो गुणिजन जेहथी तरिये ते तीरथरे । रिहन्त गणधर नियमा तीरथ चउबी संघ महा तीरथ रे ॥ लौकिक असद सीर्थने तजिये, लोकोत्तरने भजिये रे । लोकोत्तर द्रव्यभाव दुभेदे, थावर जङ्गम जजियेरे ॥ पुष्प प्रदीपाक्षत धूप पुंगी, फलै जिनेन्द्र प्रतिमां प्रपूज्य । लक्षशः श्रीपरमेष्टिमन्त्रं, जपन्ति ते तीर्थ कृतो भवन्ति ॥ * १ श्रष्टषष्टिसु तीर्थेषु यात्रायां तत्फलं भवेत् । आदिनाथस्य देवस्य स्मरणे नापितद्भवेत् । शिवपुराण ॥

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