________________
५२
अयोध्या का इतिहास ।
धन्योह' मानुषं जन्म, सुलब्ध सफल मम। थद्वापि जिनेन्द्राणाम् , शासनं विश्व पावनं ॥ .. दानेन वर्धते कीर्ति, लक्ष्मी पुण्येन वर्धते । विनयेन पुनः विद्या, गुणः सर्वे विधेकताः ।।
श्री तीर्थ पांथ रजसा विरची भवन्ति । तीर्थेषु वंभ्रमण तो न भवेष्व हन्ति । द्रव्य व्ययादिह नराः स्थिर सम्पदः स्युः ।। पूज्या भवन्ति जगदीश मथा च यन्तः ॥
हमारा जन्म सफल है क्यों कि हमको मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है और वोभी जम्बू द्वीप के भरतखण्ड में श्रेष्ठ कुल जो जैन है जिसको जैनशासन को अपनाया है जो धर्म विश्वव्यापी समझा जाता है।
दान से कीर्ति मिलती है, पुण्य से लक्ष्मी वढती है। विनय से विद्या प्राप्त होती ह विवेक से गुण मिलता है श्रीतीर्थ भूमि के रज स्पर्श से भव्यात्माओं रज रहित होते हैं तीर्थों में परिभ्रमण करने से भवमें भटकते नहीं (भघभ्रमण से मुक्त होते हैं ) ऐसे तीर्थो में दान देने से मनुष्य अचल लक्ष्मी वान होता हैं और विश्वपूज्य हैं।
पुत्राकरणे पून्नं एगगुणं सयगुणं च पडिमाए । जिण भवरोण सहस्सणंत गुणं पालणे होइ ।।
.
.
..
.
.
..