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अयोध्या का इतिहास। .
विशस्थानक पूजा मध्ये तीर्थ पदपूजा।
श्रीतीर्थङ्करो के पूज्य पाद कमलों से जो भूमि पवित्र होती है तो तीर्थ कहलाती हैं । श्रेष्ठधर्म कीर्तियुक्त सतज्ञान आनन्द सहित सर्व दंषों को हरनार सुवर्ण सदष्य कान्ति बाले देवेन्द्रों से वन्ति श्रीआदीश्वर देव से लेकर पांच भगवान के च्यवन, जन्म, दिशा, केवलय ज्ञान कल्याणक हुये वो धर्म में तीर्थ मे सर्व श्रेष्ठ सर्वोत्कृष्ट मनाये थे।
सकलतीरथनों राजियो कीजेतेहनी यात्र
जस दरिशणे दर्गतिटले निर्मलथाये गात्र "जैनत्व वास्तविक परंपरा है, जो कि अन्य धर्मों से विलकुल पृथक् एवं स्वतन्त्र है । और यही कारण कि नत्ववेत्तामों के लिये अत्यन्त अध्ययनीय एवं प्राचीन भारतवर्ष की वस्तुस्थिति है। --~एच० जैकोबी
__"सुन्दर सिद्धान्त हृदूगतभावों का पुनर्दिग्दर्शन हैं" -रस्किन ।