Book Title: Ayodhya ka Itihas
Author(s): Jeshtaram Dalsukhram Munim
Publisher: Jeshtaram Dalsukhram Munim

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Page 60
________________ अयोध्या का इतिहास | [ ४७ ] अयोध्या को पाली- प्राकृतभाषा में "श्रीयुटो" कहते हैं और बौद्ध अन्य में विशाषा लिखा गया है। प्रारम्भिक वौद्ध कालीन इतिहास में विशाषा देवी का नाम बहुत प्रसिद्ध है राज ग्रहीनगरी का धन धनञ्जय की वेटी का नाम विशाषा था जिसका व्यहि श्रावस्ती नगरों के राजा पूर्णवर्धन के साथ किया था जिसने प्रथम वौद्ध धर्म ग्रहणकर प्रथम आर्या बनीथी और बुद्धदेव के लिये एक बड़ाभारी मठ श्रावस्ती में बनाया था जिसका नाम प्राकृत " पुष्पाराम मातृ प्रासाद" लिखा है विशाषा ने अयोध्या में भी एक मठ बुद्धदेव के लिये बनवाया था जिसके नाम पर से अयोध्या को वौद्धधर्मी विशाषा कहने लगे बुद्ध देवे विशाषा में १६ पर्वतक चतुर्मास किये थे और धर्म के सिद्धान्त - सूत्र बनाये थे जिस सूत्रों को "मञ्जन वाग" में बैठ कर सुनाये थे अवदान का प्रमाण देकर लिखा है कि अञ्जन- बुद्ध देव के नाना थे जिस के नाम पर से अअन वाग नाम रक्खा था । प्रवास वर्णन में लिखा है कि अयोध्या में १०० सङ्घाराम और ३०० साधु रहते थे जो हीनयान मौन महायान दोनों सम्प्रदाय वाले पुस्तक अभ्यास करते थे नगर में ३६० जैन अरिहन्त के मन्दिर - पर पौसाला- ३०० यतीमहा राज और लाखों श्रावक श्रमण संघ निवास करते थे और

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