________________
अयोध्या का इतिहास।
[ ३७ ]
श्रमण संघमे गड़बड़ी पडं गई इस वक्त धर्मधुरन्धर जीर्णो. द्धारक तीर्थ रक्षक महाश्रतधर श्री आयर क्षत सूरजी जैनधर्म की रक्षा के लिये खड़े हुये आपने शुरू मे ४५ ग्रागमों को ग्रन्थिन किये और बहुतसा काम किया जो जैनधर्म का इतिहोस में अमर नाम रखा है।
बादमें दुष्काल के वक्त साधु शिष्य समुदाय को लेकर एक बडे प्राचार्य खडे हुये जिनका नाम श्री आर्य वज्रस्वामी मापन शुरू में ही लम्बा विहार शुरू किया और प्रथम कलिङ्ग उडीसा के राजा को जैनी बना कर पुरी, नेमीनाथजी की प्रतिमा स्थापन की और आगे विहार शुरू किया आपने श्री महान धावक विद्यागामी श्री वज्रस्वामीजी हये आपको बाल्यावस्था में जाती स्मरण का ज्ञान हुमा मापने ओस. वालवंश जैनी जावडशाके हाथ श्रीशेनंजय तीर्थ का उद्धार कराकर आप वहांसे रास्तेमें कइएक राजाओंको जैनधर्मी बना कर शिष्य समुदाय बड़ाकर द्राविड़देशमें जाकर वहां के बहुत राजाओं को जैनी बनाया आपके बाद श्रीरत्न प्रभा सुरिश्वरजी ने इ-स-१६५ में ओसियानगरी में ओसवालों को जैनी बनायें और पश्चिम भारत के कोने २ जैनधर्म का झंडा शुरू किया बाद में फिर वहां पर बौद्ध-जैनधर्म में झगड़ा पैदा हुआ इ-स-२५३ में श्रीमलवादी सूरिजी वलभिपुर की सभा मद्धे बौद्धों को शास्त्रार्थ करके हराया वाद फिर ग्रागमों में सभा में गडवड़ी