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अयोध्या का इतिहास।
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पड़गई इस वक्त इ-स- ४५३ में वल्लभिपुर की धर्म सभा में जैन आगमों को श्रीदेवर्धि क्षमा श्रमणे उद्धार किया लिपीबद्धइस वीच में पांचसो वर्ष के राज्यकारोबार में अयोध्या पर वहुत विपत्ति आई कोई तीर्थ को-राज्यकारोवार को अच्छी तरह सभालने वाला न रहा क्षत्रिय राजा भाग जाने पर वैश्यराज्य कर्ताओं का कारोवार चला और अयोध्या वैश्यों के हवाले गई।
इ-स-६०१ से ६४७ तक वैश्यराजा हर्षवर्धन का राज्य कन्नौज नगर में रहा अयोध्या का कारोवार अपने हस्तक रहा आपके वक्त में दूसरा चीनी यात्री ह्यानचांग भारत भ्रमण को आया था उसने अयोध्या का वृत्तांत करुण कथनी के साय में लिखा है जब वो वल्लभिपुर में गया तब वहां पर का जैनधर्म के लिए अच्छा लिखा है वहां राजा वालादित्य था
कुमारिलभट्ट और श्रीमच्छङ्कराचार्य
इ-स-५२१ से ६५५ तक में कुमारिलभट्ट नामका ब्राह्मण प्रथम बौद्ध भिक्षुवनकर अभ्यास कर धर्म छोडकर अपने गुरु बौद्धों से शास्त्रार्थ कर हराया और उसने बौद्धधर्म का बहुत खएडन किया और वैदिकमत का पुनः स्वीकार-संस्कार कराकर भट्टपाद की उपाधि से अलंकृत किया आपने मीमांस दर्शन पर वार्तिक भाष्य लिखा आपके दो बड़े शिष्य रहे जिन