Book Title: Ayodhya ka Itihas
Author(s): Jeshtaram Dalsukhram Munim
Publisher: Jeshtaram Dalsukhram Munim

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Page 31
________________ [ १८ ] अयोध्या का इतिहास रूप मायदेव्या माता के पास, श्रीभर श्वरजी के पास अनु. घर मागये दूसरी तरफ से सिद्धि चक्रको वधाई लकर अनुचर माये भरतजी विचार में पड़गये "पहिले रिद चक्र की भेट कीजाय कि भगवान् की वन्दना कीजाय" ? माता मारुदेव्या के पास भी अनुचर आये थे माताजी वृद्ध होचुकी थी भगवान् अपने प्रिय पुत्र का माम सुनकर ही माताजी को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुवा, और भरतजी को पास बुलाकर भगवानकी वन्दनांकी तैयारी का आदेश दिया गया । कंकोतरी मूकी सहुदेस; भरते तेडयो संघ अशेष । श्राव्यो संघ अयोध्यापुरी, प्रथम तीर्थंकर यामाकरी ॥ संघ भक्ति कीधी अति घणी; संघ चलायो शेत्र जय भणी । गणधर बाहुवली केवली, मुनिवर कोडीसाथे लियावली ॥ चक्रवर्तिनी सघली ऋद्धि; भरते साथे लीधी सिद्धि । हयगज रथ पायक परिवार, तेतो कहत न आवे पार ॥ भरतेश्वर संघवी कहेबाय; मार्गे चैत्य उधर तो जाय । संघ श्राव्यो शेत्रजय पास; सहुनीपुरी मननी श्रास || नयणे निरिख्यो शेजूंजो राय; मणी माणिक मोतीशं वधाय । निणे ठामे रही महोत्सव कियो; भरतें बाँद पुर वासियो ।

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