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अयोध्या का इतिहास |
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हो विचित्र चित्र क्रियायें रचती थी अर्थात् उस नगरी की
रत्नमय हवेलियों का कलं
विना
आकाश में पड़ने से चित्र बने हुये
दीवारों के अनेक प्रकार के
दिखाई
देते थे ।
मेरु पर्वत को
चोटी के
समान
अंत्री
ध्व' -
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पोने को होलियां जामों के भिवसे चारों तरफ से पत्रालम्बन की लीला का विस्तार करती थी, जो विद्याधरों की सुन्दरीयों को विना यत्न के दर्पण का काम देती थी, नगरी के घरों के प्रांगन में मोतियों की स्वस्तिक बनती थी और मोतियों से वान्तिकार्ये इच्छानुसार पोची का खेल खेलतीयी नगरीके बागीची गत दिन पड़नेवाले खेचरियों के विमान क्षणमात्र पक्षियों के घोसलों की शोभा देते थे वहां की प्रटारियों और बेलियों में पड़े हुये रत्नों के ढेरों को देखकर रत्न - शि-खर वाले रोहणाचल का ख्याल होता था, वहां की ग्रह - afपकायें, जलक्रीड़ा में आसक्त सुन्दरियों के मोतियों के हार टूट जाने से ताम्रपर्णी नदी की शोभा को धारण करतीथी asi रात में चन्द्रकान्तयो की दीवारों से भरने वाले पानी से राह की धूल साफ होती थी नगरी अमृत समान जलवाले लाखों कुए बावलो और तालाबों से नवीन अमृत
.