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अयोध्यो का इतिहास।
कुण्ड वाल नाग लोक के समान शोभा देती थी*
!! सांकेत पुर॥
सांकेत रुठी रयझ्या श्लाध्यव मुनिकेतनः। स्वनिकेत इवा हातु साकूतेः केत वाहुभिः ॥७७॥
-भादिधुर । भ० - १२ ॥ इसको सांकेत इसलिये कहते थे कि इनमें मच्छे २ मान थे उनपर झण्डे फहराते थे जिस से जानपड़ता था कि देवताओं को नीचे भूलोक में बुलाते हैं।
* प्रष्ट का नवद्वारा देवानां पुः अयोध्या । लस्यां हिरण्मयः कोश सों ज्योतिषावृतः ॥
[प्रथोद द्वितीय स्वरड]